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(१४) चीवर नर धरे, मल मूत्र उत्तर दिसि करे ॥ रातें द क्षिण सामो रही, शरीर शंका टाले सही ॥३॥ जस्म गण गोशाला जहिं, मिल मातरं न करे त हिं॥राफो मल मूतरनां गम, तरुवर अग्नि जल श्राराम ॥ ४ ॥ नदी मारग वरजे समशान, वरजे स्त्रीलोचन जो शान॥पुरुष वडेरा नजरें नहिं, जाए प बर मुंगर जहिं ॥५॥ उतावलो नर त्यां नवि होय, गुह्य गम माटीयें लोय ॥ जलें हाथ ते पहेलो धो य, पढ़ें देह पखाले सोय ॥६॥ मिल वेगलो प्रां यें जाय, जली नूमि नहिं जीवह गय ॥ विवेकवि लासमांहे कह्यो विचार, मौनें वस्त्र धरीज निहार॥ ॥ ॥ वमी रहित नवि बेसे गाय, थं मिल जाएं तेणें गय ॥उघनियुक्तिमांहे पण कह्यु, आगममांहे मुनिवरने कडं ॥७॥ नीचां घर वसति बहु ज्यांह, थंमिल मुनि नवि जाशे त्यांह ॥ जिहां उपधान उ दाह नवि थाय, साधु मिलें त्यांकणे जाय ॥५॥ विषम नूमिका तृण ज्यां बहु, ते थानक नर टालो सहु ॥ ऋतु मही वर्ण पलटाय, तेणे थानकें थं मिल नवि जाय ॥ १० ॥ जघन्यथकी अंगुल महि चार, अचित्त हुए जाणे निर्धार ॥ घर वाडी देउल ने
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