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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४५) रीनिकव्यो, गांठे नहिं काय धन ॥ पंथे थाये दोहि लो, फुःखें पामे अन्न ॥७॥ सर्वगाथा ॥ १५२६ ॥ ॥ ढाल ॥ चोपानी देशी ॥ ॥श्रतिहि दोहिलो थाये जिस्ये, वाणोतर ते श्राव्यो तिस्ये ॥ देखी शेठ असंत्रम थाय, साहामो जश्ने लागो पाय ॥ १ ॥ वलगी कोटें रोयो घणुं, किस्युं रूप दीसे तुम तणुं ॥ सुवन रत्न मणि मोति जेह, नूषण वस्त्र गयां क्यां तेह ॥२॥ शेव कहे तुं अलगो थयो, त्यार पढ़ें अव्य सघलो गयो। खूटयुं पुण्य पूर्व- जदा, राख्युं किस्युं रहे नहिं तदा ॥३॥ वाणोतर रोतो नवि रहे, तव मेंता सघला एम कहे ॥ घेला शेठ थया सहि होय, जीखारी गले वलगी रोय ॥ ४ ॥ वाणोतरने वास्या वढी, एहणे पोषी मुझ चांमडी ॥ एहने कोलिये हुँ उबस्यो, एणे मुऊ व्यहारी कस्यो ॥ ५॥ वाणोतर ए मुक शेत, गुण न समाये मारे पेट ॥ एम करि घर तेडी करी, इंड सरीखो कीधो फरी॥६॥ एक दि वस मेव्यो परिवार, पेमु पोतियुं तेणी वार ॥ स रख वखारी धन नूषण हार, आपे शेग्ने तेणी वार ॥ ७॥ पूजे गौतम त्यां गहगह्यो, वाणोतर उशिंग हि.१० For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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