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(१५३) क सार ॥३॥ श्लोक ॥ “चउसहि कुसुमरसा, चल रासी राय दव नेयवा ॥ सोल सुगंधा वासा, दस विहा हुँति केसरिया ॥४॥” पीरसे एम जगति करे लाख, शाल दाल अढारे शाक ॥ वली करें वास्यां पान, अति मी संजलावे गान ॥ ५ ॥ जाव जीव खंने ले फरे, एणी परें जगति जलेरी करे ॥ पूजे गौ तम सुणि जिनराय, तेह पुत्र शिंगण थाय ॥६॥ ना शिंगण तोहि न थाय, पूबे गौतम कहो उपा य ॥ नांखे वीर पमाडे धर्म, उशिंगण थावानो मर्म ॥७॥ को एक महा व्यवहारी जेह, श्रावी वखारे बेगे तेह ॥ वाणोतरनो बहु परिवार, आव्यो माग वा एक कुमार ॥ ७ ॥ शेठ तणे मने आवी दया, पूबी वात करी मन मया ॥ कुमर कहे मुऊमात पि ताय, बाल पणे परलोकें जाय ॥ ए ॥ धन खोयु तव शी विधि करूं, ते कारण हुं परघर फरूं ॥ सुंदर जाणी राख्यो घरे, जोजन वस्त्र दिये बहु परें ॥१॥ यौवन वय परणाव्यो सही, अलगो सोय रह्यो गह गही ॥ सुबुद्धि पणुं तेहमांहि अपार, तेणें तेहने हाथे व्यापार ॥ ११॥ वाणोतरी टाले तेणी वार, सुत चोथ करतो व्यापार ॥ नर परदेशे गयो ते जिस्ये,
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