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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२४) ॥ ए ॥ ए० ॥ दश रे दिवस लगें खरचतो, लखमी वाधती जायो रे ॥ लही कहे हुँतो श्हां रही, सेवी श तुम तणा पायो रे ॥ १०॥ ए ॥ वणिक कहे बोट्युं दोयनु, होशे सहि अप्रमाणो रे ॥ तेणें घर बोडीने वन गयो, पाम्यो राज सुजाणो रे ॥ ११॥ ॥ ए॥ अनुक्रमें दीक्षा ते ग्रहे, जव पांचमे मो ख्यो रे ॥ तेणें कारण धन खरचियें, पात्र जोश्ने पोखो रे ॥ १२ ॥ ए॥ ॥जो धन खरचतां गयुं घटी, शोक ते न करे लगारो रे ॥ धैर्य धरे गये आवते, धर्माधर्म विचारो रे ॥ १३ ॥ ए॥ शोक धरे पापी पुरुषडो, गयुं मुफ खरचतां धन्नो रे ॥अथवा उनु पड्युं देयतां, मूरख चिंते निश दिन्नो रे ॥१४॥ ॥ ए० ॥ पुण्यवंत इस्यु नवि चिंतवे, खरचे धन शुन गमें रे ॥ व्यवहार शुकै धन मेलतो, थोडं होय बहु कामें रे ॥ १५॥ ए॥ श्हां दृष्टांत बे वणिकनो, नाख्ने षजनो दासो रे ॥ ए हितशिक्षाने जे सुणे, पहोंचे तेहनी आशो रे ॥ १६ ॥ ए० ॥ १०५७ ॥ - ॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी ॥ ॥ देव जशो नर एहवे नाम, बेहु मित्र चाट्या धनने काम ॥ कनक कुंमल पड्युं वाटें एक, देखे For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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