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राखतां, तेहने मुक्तिनो माग होई ॥ तेहनो पंथन हिं अवर कोइ॥ पंच० ॥१॥ए आंकणी ॥ श्रा दि अनादि नित्य सिझनुं समरवू, जपतायरिय उवशाय सारो ॥ सकल मुनि समरतां पुण्य पहोंचे बहु, जीव सुखीयो सदा होय ताहारो ॥ मान तुं बोल ए पुरुष महारो ॥ पंच० ॥२॥ जपत अरि हंत जे हाथ माला विना, तेहने पुण्य ते सबल होई ॥ शंखमाला ग्रही जाप जिननो करे, सहस गुj फल तास जोश॥ काय आलस करो पुरुष कोश ॥ पंच॥ ३ ॥ वली विषुम ने रक्त रतांजली, क रिय माला को हाथ जाले ॥ सहस गुणुं फल ते हने त्यां हुवे, फटिक रत्ने दस सहस आले ॥ जश घणो तेहनो जगमाहे चाले ॥ पंच० ॥४॥ माला मोती तणी लाख नवकार फल, चंदनमाला फल कोडी देही ॥ दश कोडी नवकार फल हेममाला कही, कमलबंधे कोडाकोडि लेही ॥ वात धरजे मन मांहि एही ॥ पंच० ॥ ५॥ नोकरवाली जे गुणे रु प्रादनी, असंख्य नोकार फल तेह आपे ॥ अनंत नोकार फल तेह नर पामता, पत्रजीवानी जे हाथ थापे ॥ पापनां पमल ते त्यां न व्यापे ॥ पंच० ॥
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