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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ११७) मित्रज हुवो, राख्यां रत्न तेणें आपातेणें नीचा नरने तजो, राखो संतनी वाट ॥४॥ साचा साथें मैत्री करो,कदिएक पाडो काम॥लखत साखि विना वली, सहि नवि दीजें दाम ॥५॥ सर्व गाथा ॥ एए४ ॥ ॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी ॥ ॥ लखत करीने दीजें दाम, साख विना नवि की जें कामशास्त्र कहे साधु कीजियें, साखी चोर कने लीजीयें ॥ १॥ एक दृष्टांत हां जाणियो, धन बेई चाल्यो वाणियो ॥ धूर्त विचकण ने वाचाल, वाटें चोर मल्या ततकाल ॥२॥शेठे हरखी कस्यो जूहार, बोल्या चोर थई हुशियार ॥ लाव्य अव्य सघलु अम देह, पढें जूहार लांबोज करेह ॥३॥ शेव कहे ल्यो साखें करी, अवसरें पाईं देजो फरी ॥ चोर कहे ए नोलो घणुं, किहां खोलशे घर आपणुं ॥४॥ हांसी काजें श्रागल धस्यो, रान बीलाडो साखी कस्यो । लेश अव्य मूक्युं वाणियो, श्राव्यो घेर लेप्राणीयो॥ ॥५॥ केटले कालें तस्कर त्यांह, श्राव्या वाणिग नगरीमांह ॥ घणी वस्तु करियाणां बहु,चोर उलख्यो वणिके सहु ॥ ६ ॥ जाली अव्य माग्युं जेटले, नृप आगे पहोता तेटले ॥ न्याय करेवा बेगे राय, ल For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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