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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०६) केम जाणे ॥बोले कुमरी साजल राय, देव गुरुनो ए महिमाय ॥३५॥ जिव्हाग्रे शारदा वासी, तेणे हु ज्ञान प्रकाशो॥ नवि जां उडो अधिको, जिम जानु मतीनुं तिलको ॥३६॥ तव नंदें खुशी हो जोयो, ए तो शारदानंदन होयो॥करि परिअचि उंचीमलीया, मन तणा मनोरथ फलीया ॥३॥ एह वचन सुणी मन वाले, वंचना कृतघन पणुं टाले॥टाले विश्वास घात ते श्राप, कहे रुषन वडुं ए पाप ॥३॥ ए० ॥ ॥ ढाल ॥ चोपाश्नी देशी ॥ ॥ पाप तणा कहुं दोय प्रकार, गोप्य प्रगटनो सुणो विचार ॥ गोप्य तणा वली नेद डे दोय, एक न्हा, एक महोटुं होय ॥ १॥ कूड तोल ने कूडां माप, एह कयु में न्हा, पाप ॥ जे नर करता विश्वास घात, कहुं गुप्त ए महोटुं पाप ॥२॥प्रग ट पापना दोय प्रकार, प्रथम नेद कुलनो आचार ॥ म्लेट मंस तणे नित्य खाय, तेहने पाप थोडं कहे वाय ॥३॥ निर्लज पणे एक करतां पाप, सीधो वेश यतिनो श्राप ॥ प्रगट पाप करेज अपार, तेहने अनंत कह्यो संसार ॥॥ जे सत्यवादी होये श्राप, ते न करे नर गर्नु पाप ॥ निसुग पणे ज्यारे श्राद For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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