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________________ Shri Maharadhana Kendra www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailashs मालकीयत करने का हकदार अब कोई भी नहीं रहा है, जिन को जमीन में दबानेवाले सर्वथा नष्ट हो गये हैं, जिन के मालिकों के घरबार तक भी नाश हो चुके हैं ऐसे निधान देवता लोग लालाकर राजकुल में भरते हैं । अब वे निधान किन २ स्थानों से देवता लाते थे सो कहते है-ग्रामों से, आकरों से अर्थात् लोहादि की खानों में से, नगरों से, जिसके ईर्दगिर्द धूली का कोट हो ऐसे खेट से, कुनगरों से, दूर प्रदेश के ग्रामों से, जिस जगह जल और स्थल के मार्ग मिलते हों ऐसे स्थानों से, आश्रमों से, संवाहस्थानों से अर्थात खेडुतों की धान्यसंग्रह करने की भूमि में से, संन्निवेशों से, त्रिकोण स्थानों से, चौराहों से, अनेक मार्ग संमेलक स्थानों से, चतुर्मुख स्थानों से, देवकुलों - देवालयों से, मठों से, राजमार्गों से, ग्रामों के ऊंचे स्थानों से, नगरों के ऊंचे स्थानों से, ग्रामों का जल निकलने के स्थानों से, इसी तरह से नगर का पानी निकलने के स्थानों से, पुरानी दुकानों से, जीर्ण सभाओं से, जीर्ण प्रपाओं से, आराम-बगीचों से, उद्यान अर्थात् पुष्पित बगीचों से, स्मशानों से, शून्यागार-जिन घरों में कोई भी मनुष्य न रहता हो ऐसे घरों से, पर्वतों की गुफाओं से, शान्ति गृहों से, शैल-पर्वत गृहों से इत्यादि स्थानों में जो कृपण मनुष्योंद्वारा पूर्वकाल में दबाया हुआ निधान-धन और अब उन निधानों का कोई भी मालिक न रहने के कारण इंद्र की आज्ञा कुबेर के द्वारा मिलने पर जृंभक जाति के देवता उन्हें सिद्धार्थ राजकुल में ला रखते हैं । जिस रात्रि को श्रमण भगवन्त महावीरस्वामी ज्ञातकुल में संहरित हुए उस रात्रि से लेकर ज्ञातकुल हिरण्य For Private And Personal Gyanmandir
SR No.020376
Book TitleHindi Jain Kalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Sabha
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1949
Total Pages327
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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