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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir श्री दूसरा व्याख्यान. कल्पसूत्र हिन्दी बनुवाद । ॥२४॥ भरतक्षेत्र में अपरकंका नामक राजधानी के स्वामी राजा पद्मोत्तर के सामने जा कर, जो स्त्रीलंपट था, द्रौपदी के | VI रूप की प्रशंसा की। उसने अपने किसी मित्र देव के द्वारा द्रौपदी को अपने अन्तःपुर में मंगवा लिया । द्रौपदी के गुम होने पर पांडव माता कुन्तीने कृष्ण से यह समाचार कहा । कृष्ण द्रौपदी की खोज में व्यग्र थे । उस समय वहाँ पर आये हुए उसी नारद से द्रौपदी का समाचार सुन कृष्णने सुस्थित देव की आराधना की । उस देव की सहाय से दो लाख योजन प्रमाणवाले लवणसमुद्र को उलंघन कर कृष्ण पाण्डवों सहित धातकी खण्ड की अपरकंका नगरी में पहुँचा। वहाँ पर पाण्डवों का तिरस्कार करनेवाले पद्मोत्तर राजा को नरसिंहरूप से जीत कर और द्रौपदी के वचन से उसे जिन्दा छोड़ कर द्रौपदी को साथ ले कृष्ण वापिस लौटे । लौटते समय कृष्णने अपने पांचजन्य शंख को बजाया । शंख-शब्द सुन कर वहाँ विचरते हुए मुनिसुव्रतस्वामी तीर्थपति के वचन से कृष्ण का वहाँ आगमन जान कर मिलने की उत्सुकता से वहाँ के कपिल नामक वासुदेवने समुद्रतट पर शंखनाद किया। परस्पर दोनों के शंखनाद मिल गये। इस प्रकार कृष्ण का अपरकंका नगरी में जाना इस अवर्पिणी में पाँचवाँ आश्चर्य हुआ है। (६) मूल विमान से सूर्य चंद्र का अवतरण-कोशांबी नगरी में भगवान श्री वीरप्रभु को वन्दनार्थ सूर्य और चंद्रमा अपने मूल विमान से आये थे, यह छठा आश्चर्य हुआ। (७) हरिवंश कुल की उत्पत्ति-कौशांबी नगरी में सुमुख नामक राजा राज्य करता था। उसने शाला ॥२४॥ For Private And Personal
SR No.020376
Book TitleHindi Jain Kalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Sabha
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1949
Total Pages327
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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