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कर वह सौधर्म इंद्र बन गया। इधर गैरिक मी अपने धर्म में तत्पर रह कर मर के उसी देवलोक में इंद्र का ऐरावण नामक हाथी-वाहन हुआ। वह ऐरावण कार्तिक सेठ को इंद्र के रूप में देख कर भागने लगा। शकेंद्र उसे पकड़ कर उसके मस्तक पर बैठ गया। ऐरावणने इंद्र को डराने के लिए दो रूप कर लिये । इंद्र ने भी दो रूप कर लिये । फिर उसने चार किये, इन्द्रने भी चार रूप किये । फिर इंद्रने अवधिज्ञान से उस का स्वरूप विचार कर उसका तिरस्कार किया तब वह अपने स्वाभाविक रूप में आ गया। इस प्रकार से कार्तिक सेठ की कथा है।
इंद्र द्वारा किया हुआ शक्रस्तव । सहस्राक्ष इंद्र के जो पांच सौ देव मंत्री हैं उन के नेत्र इंद्र का कार्य करने के कारण वे नेत्र भी इंद्र के ही कहे जाते हैं, इसी कारण से इंद्र को हजार आँखोंवाला कहते हैं। मघवा-महामेघों को वश में रखनेवाला, पाकशासन-पाक नामक दैत्य को शिक्षा करनेवाला, दक्षिणार्द्ध लोकपति-मेरु से दक्षिण ओर के लोकार्य का अधिपति, ऐरावण वाहनवाला, बत्तीस लाख विमानों का स्वामी, रज रहित और स्वच्छता से आकाश के समान निर्मल वस्त्रों को धारण करनेवाला, माला और मुकुटादि आभूषणधारी, गालों पर सुवर्ण के मनोहर
और लटकते हुए सुन्दर कुंडल से शोभायमान, छत्र चामरादि राजचिह्नों से विराजित, पैरों तक लटकती हुई पंचवर्णीय पुष्पमाला से विभूषित शकेंद्र सुधर्म नामा सभा में शक्र नामा सिंहासन पर बैठ कर बत्तीस लाख
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