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विशेष समझ लेना चाहिये कि जिस तीर्थकर का जीव स्वर्ग से आता है उसकी माता उसके गर्भ में आने पर विमान देखती है और जो जीव नरक में से निकल कर तीर्थकर होता है उसकी माता उसके गर्भ में आने पर स्वप्न में भवन-सुन्दर मकान देखती हैं।
चौदह स्वप्न देख कर देवानन्दा को बड़ा संतोष हुआ। वह चित्त में आनन्द को धारण करती हुई हृदय al में प्रीतिवाली, मन में तुष्टिवाली, हर्ष से विस्तृत हृदयवाली, मेघ की जलधारा से सिंचित कदंब पुष्प के समान
विकसित रोमराईवाली हो कर उन प्रशस्त स्वमों का अच्छी तरह स्मरण करने लगी। स्मरण कर अपनी शय्यामें से उठ कर मानसिक उत्कंठा सहित और चापल्य रहित गति से, स्खलना अर्थात् विलम्ब को छोड़ कर और राजहंस के समान गति से जहाँ पर ऋषभदत्त ब्राह्मण सो रहा था, वहाँ आ कर ऋषभदत्त ब्राह्मण को जय विजय कर मीठी वाणी से जगाती है और स्वयं एक भद्रासन पर बैठ जाती है। फिर वह देवानन्दा ब्राह्मणी स्वस्थ होकर मस्तक पर अंजलि कर अर्थात् हाथ जोड़ कर विनयपूर्वक कहने लगी कि 'हे देवानुप्रिय-देवताओं के प्यारे ! आज जब मैं अल्प निद्रा में थी तब गज, वृषभ आदि उत्तम चौदह स्वमों को देख कर जाग उठी। इन कल्याणकारी स्वमों का मुझे क्या वृत्तिविशेष फल होगा? ( यहाँ पर फल से पुत्रादि और वृत्ति से जीवनोपाय समझना)। देवानन्दा के मुख से उक्त वचन को सुन कर मन में अवधारण करता हुआ ऋषभदत्त ब्राह्मण हर्षित हो कर मेघ की जलधारा से सिंचित हुए कदंब पुष्प के समान विकसित रोमराईवाला हो कर
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