________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
गृहस्थ के घर पर यदि दोनों ही वस्तु साधु के आने से पहले पकानी रक्खी हो तो दोनों ही लेनी कल्पती हैं । जो चीज उसके आने से पहले रॉधनी शुरु की हो वह उस साधु को कल्पती है और जो उसके आने पर राँधने रक्खी हो सो उसे नहीं कल्पती । ३५ । चातुर्मास रहे साधु या साध्वी गृहस्थ के घर पर भिक्षा लेने के लिए गया हुआ हो उस वक्त यदि रह रह कर वारिश पड़ती हो तो उसे आराम या वृक्ष के मूल नीचे जाना कल्पता है, परन्तु पहले ग्रहण किये भात पानी सहित भोजन का समय उलंघन करना नहीं कल्पता । यदि उस वक्त वृष्टि न होवे तो आराम या वृक्ष के मूल नीचे रहा हुआ साधु क्या करे ? उत्तर देते हैं- पहले उद्गम आदिसे शुद्ध आहार खाकर पीकर पात्र निर्लेप कर और घोकर एक तरफ पात्रादि उपकरण को रख कर ( शरीर के साथ लगा कर ) वर्ष वर्षात में सूर्यास्त से पहेले जहाँ उपाश्रय हो वहां जाना कल्पता है। परन्तु वह रात्रि उसे गृहस्थ के घर पर ही निकालनी नहीं कल्पती, क्यों कि एकले साधुको बाहर रहने से 'स्वपरसमुत्था' - अपने से और दूसरों से उत्पन्न होते बहुत से दोषों की संभावना है, एवं उपाश्रय में रहनेवाले साधु भी चिन्ता करें | ३६ / चातुर्मास रहे साधु साध्वी गृहस्थ के घर भिक्षा के लिये गया हुआ हो तब यदि थम थम कर वृष्टि होती हो तो उसे आराम के नीचे यावत् वृक्ष के मूल नीचे जाना कल्पता है । ३७ । अब थम धम कर वृष्टि होती हो तो आरामादि के नीचे साधु किस विधि से खड़ा रहे सो बतलाते हैं। विकटगृह वृक्षमूलादि के नीचे रहा हुआ साधु एक साध्वी के साथ नहीं रह सकता। वैसे स्थान में एक साधु को दो साध्वियों के साथ रहना नहीं कल्पता ।
For Private And Personal