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कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद ।
॥१२७॥
आठवां व्याख्यान।
आठवा
व्याख्यान. अब गणधरादि की स्थविरावलीरूप आठवाँ व्याख्यान कहते हैं। उस काल और उस समय में श्रमण भगवन्त श्रीमहावीर प्रभु के नव गण और ग्यारह गणधर हुए । शिष्य पूछता है कि-हे भगवान! आप किस हेतु से ऐसा कहते हैं कि श्रमण भगवन्त श्री महावीर प्रभु के नव गण और ग्यारह गणधर हुए ? क्यों कि-अन्य सब तीर्थंकरों के जितने गण उतने ही गणधर हुए हैं। शिष्य के प्रश्न का उत्तर देते हुए आचार्य महाराज कहते हैं कि-श्रमण भगवन्त श्रीमहावीर के गौतम गोत्रवाले बड़े इंद्रभूति नामक अणगार पाँचसौ मुनियों को वाचना देते थे। ( मतलब इतने उनके मुख्य शिष्य थे, सब जगह ऐसा ही समझना चाहिये) भारद्वाज गोत्रवाले आर्य व्यक्त नामा स्थविर पाँचसौ मुनियों को वाचना देते थे। अग्निवैश्यायन गोत्रवाले स्थविर आर्य सुधर्मा पाँचसौ मुनियों को वाचना देते थे। वासिष्ठ गोत्रवाले आर्य मंडितपुत्र साढ़े तीनसौ मुनियों को पाठ देते थे। काश्यप गोत्रवाले आर्य मौर्यपुत्र साढ़े तीनसौ मुनियों को वाचना देते थे । गौतम गोत्रवाले स्थविर अकंपित और हारितायन गोत्रवाले स्थविर अचल भ्राता ये दोनों तीनसौ तीनसौ मुनियों को पढ़ाते थे । कोडिन्य गोत्रवाले स्थविर मेतार्य और स्थविर प्रभास ये दोनों तीनसौ तीनसौ मुनियों को वाचना देते थे। इसी हेतुसे हे आर्य ! ऐसा कहा जाता है कि श्रमण भगवन्त श्री महावीर प्रभु के नव गण
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