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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रथम व्याख्यान. हिन्दी | || लिए यह कल्पसूत्र बड़े समारोह पूर्वक सभा के समक्ष वांचना प्रारंभ किया था, तबसे चतुर्विध संघ भी इसे सुनने का अधिकारी हुआ है । परन्तु वांचने का अधिकारी तो योगोद्वहन किया हुआ साधु ही है। पर्वाधिराज में करने योग्य धर्मकार्य अनुवाद । इस वार्षिक पर्व में कल्पसूत्र सुनने के समान ही यह पांच कार्य भी अवश्य करने योग्य हैं-१. चैत्य परि॥१०॥ पाटी-हरएक जैनमंदिर में दर्शनार्थ जाना, २. समस्त साधुओं को वन्दन करना, ३. सांवत्सरिक प्रतिक्रमण करना, ४. परस्पर खमाना और ५. अट्ठम तप करना । ये पांच कार्य भी कल्पसूत्र के श्रवण समान इच्छित पदार्थ को देनेवाले हैं एवं अवश्य करने योग्य हैं। जिनप्रभुने उक्त विधियों की आज्ञा की है। उनमें जो अट्ठम तप है वह तीन उपवास करने से होता है। यह तप महाफल का कारण, ज्ञान, दर्शन, चारित्ररूप तीन रत्नों को देनेवाला, तीन शल्य को उखेड़ फेंकनेवाला, तीन जन्म को पवित्र बनानेवाला, मन वचन, शारीरिक दोषों को शोषण करनेवाला और तीन जगत में श्रेष्ठ पद देनेवाला है। इसलिए मोक्षपद के अभिलाषी भवि प्राणियों को यह अहमतप अवश्य करने योग्य है । इस पर नागकेतु का दृष्टान्त कहते हैं। अट्ठम तप पर नागकेतु की कथा चंद्रकान्ता नगरी में विजयसेन नामक राजा रहता था, उसी नगरी में श्रीकान्त नामक एक व्यापारी रहता था । उसके श्रीसखीनामा स्त्री थी। उसको बहुतसी मानतायें मानने पर एक पुत्र पैदा हुआ, वह ॥१०॥ For Private And Personal
SR No.020376
Book TitleHindi Jain Kalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Sabha
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1949
Total Pages327
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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