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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद | ॥ १२६ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir चितायें कराई । एक तीर्थंकर के शरीर के लिए, एक गणधरों के शरीर के लिए, और एक शेष मुनियों के लिए । फिर आभियोगिक देवों से क्षीरसमुद्र से जल मंगवाया। उस क्षीरसमुद्र के जल से इन्द्रने प्रभु के शरीर को स्नान कराया। ताजे गोशीर्षचंदन के द्रव से विलेपन किया, हंस लक्षणवाला वस्त्र ओढाया और सर्व अलंकारों से विभूषित किया। इसी तरह अन्य देवोंने गणधरों तथा मुनियों के शरीर को भी किया। फिर इन्द्रने विचित्र प्रकार के चित्रों से चित्रित तीन शिविकायें बनवाईं। आनन्द रहित दीन मनवाले तथा अश्रुपूर्ण नेत्रवाले इंद्रने प्रभु के शरीर को शिबिका में पधराया। दूसरे देवोंने गणधरो और मुनियों के शरीरों को शिबिका में पधराया। इंद्रने तीर्थंकर के शरीर को शिविका में से नीचे उतार कर चिता में स्थापन किया। दूसरे देवोंने गणघरों और मुनियों के शरीरों को चिता में स्थापन किया। फिर इंद्र की आज्ञा से आनन्द और उत्साह रहित हो अग्निकुमार देवोंने चिता में अग्नि प्रदीप्त किया । वायुकुमारने वायु चलाया और शेष देवोंने उन चिताओं में कालागुरु, चंदनादि उत्तम काष्ठ डाला तथा सहत और घी के घड़ों से चिताओं को सिंचन किया । जब उनके शरीर की सिर्फ हड्डियाँ शेष रह गई तब इंद्र की आज्ञा से मेघकुमारने उन चिताओं को ठंडी कर दीं। सौधर्मेने प्रभु की दाहिनी तरफ की उपर की दाढ ग्रहण की। ईशानेंद्रने उपर की बाँई तरफ दाढ ग्रहण की । चमरेंने नीचे की दाहिनी दाढ और बलींद्रने नीचे की बाँई दाढ ग्रहण की । अन्य देवोंने भी किसीने भक्तिभाव से, किसीने अपना आचार समझ कर और कितनेएकने धर्म समझ कर शेष रही हुई अंगोपांग अस्थियाँ ग्रहण की । For Private And Personal सातवां व्याख्यान. ॥ १२६ ॥
SR No.020376
Book TitleHindi Jain Kalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Sabha
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1949
Total Pages327
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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