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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra भी कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद | ॥ ११९ ॥ www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir स्त्री की ६४ कला त्रियों की चौसठ कला निम्न प्रकार हैं: - नृत्य १, औचित्य २ चित्र ३, वादित्र ४, मंत्र ५, तंत्र ६, धनवृष्टि ७, फलाकृष्टि ८, संस्कृतवाणी ९, क्रियाफल १०, ज्ञान ११, विज्ञान १२, दंभ १३, अंबुस्तंभ १४, गीतमान १५, तालमान १६, आकारगोपन १७, आरामरोपण १८, काव्यशक्ति १८, वक्रोक्ति २०, नरलक्षण २१, गजपरीक्षा २२, अश्वपरीक्षा २३, वास्तुशुद्धि २४, लघुवृद्धि २५, शकुनविचार २६, धर्माचार २७, अंजनयोग २८, चूर्णयोग २९, गृहिधर्म ३० सुप्रसादन कर्म ३१, कनकसिद्धि, ३२, वर्णिकावृद्धि ३३, वाक्पाटव ३४, करलाघव ३५, ललितचरण ३६, तैलसूरभिता करण ३७, भृत्योपचार ३८, गेहाचार ३९, व्याकरण ४०, परनिराकरण ४१, वीणावादन ४२, वितंडावाद ४३, अंक स्थिति ४४ जनाचार ४५, कुंभक्रम ४६, सारिश्रम ४७, रत्नमणिभेद ४८, लिपिपरिच्छेद ४९, वैद्यक्रिया ५०, कामाविष्करण ५१, रंधन ५२, रसोई ५३, चिकुरबंध ५४, मुखमंडन ५५, कथाकथन ५६, कुसुमग्रंथन ५७, सर्वभाषाविशेष ५८, भोज्य ५९, यथास्थान आभरण धारण ६०, अंत्याक्षरका ६१, प्रश्नप्रहेलिका ६२, शालिखंडन ६३ और वाणिज्य ६४ । इत्यादि ये स्त्रियों की कलायें हैं । कर्म से खेति, वाणिज्यादि और कुंभार आदि के प्रथम कथन किये कर्म सौ शिल्प समझना चाहिये । इन शिल्पों का प्रभुने उपदेश किया । इसका तात्पर्य यह है कि जो बातें आचार्य अर्थात् गुरुद्वारा सिखी जाती है। उनका नाम शिल्प है और जो बातें काम करते २ आ जाती है उनका नाम कर्म है। पुरुष की बहत्तर और त्रि For Private And Personal सातवां व्याख्यान. ॥ ११९ ॥
SR No.020376
Book TitleHindi Jain Kalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Sabha
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1949
Total Pages327
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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