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श्री
सातवा व्याख्यान
कल्पसूत्र हिन्दी बनुवाद।
अपने हृदय को कहने लगी-अरे धृष्ट, निष्ठुर, निर्लज हृदय ! जब तेरा स्वामी दूसरी जगह रागवान् हुआ है तब तू अभीतक भी इस जीवन को किस लिए धारण करता है ? फिर निःश्वास डालकर अपने स्वामी को उपालंभ देकर बोली-हे धूर्त ! यदि तू सर्व सिद्धों की भोगी हुई वेश्या में रक्त हुआ था तो फिर इस तरह विवाह के बहाने तूने मेरी क्यों विडम्बना की ? सहेलियोंने उस से रोष में आकर कहा-हे सखी! __ लोक पसिद्धी वत्तड़ी, सहिये एक सुनिज । सरलो बिरलो शामलो, चुकीय विहि करिज ॥ ____ अर्थात-लोक प्रसिद्ध कहावत है कि श्याम रंग का आदमी सरल स्वभाववाला नहीं होता और कोई हो। भी जाय तो यह माना जाता है कि विधाता की गलती से हो गया।
हे प्रिय सखी ! ऐसे प्रेमरहित पर क्यों प्रीति रखती है ? तेरे लिए कोई प्रेमपूर्ण वर ढूँढ निकालेंगे। यह | बात सुनकर राजीमती अपने दोनों कानोंपर हाथ रखकर बोली-सखियो! मुझे न सुनने के वचन क्यों सुनाती हो ? यदि सूर्य पश्चिम में उदय होने लगे, मेरुपर्वत चलायमान हो जाय; तथापि मैं नेमिकुमार को छोड़कर दूसरे को पति नहीं बनाऊँगी। फिर नेमिनाथ प्रभु को लक्षकर कहती है-हे जगत के स्वामी! व्रत की इच्छावाले आप घर आये हुए याचकों को इच्छा से अधिक दोगे, परन्तु इच्छा रखनेवाली मुझ को तो आपने मेरे हाथपर अपना हाथ तक भी न दिया। अब विरक्त होकर बोलती है--हे प्रभो ! यद्यपि आपने अपना हाथ इस विवाहोत्सव में मेरे हाथ पर नहीं रक्खा तथापि दीक्षा महोत्सव में यह हाथ मेरे शिर पर होगा ।
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