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से बींधने लगीं । कितनीएक कामकला के विलास में कुशलता रखनेवाली उन्हें हँसी से विस्मय करने लगीं । फिर वे सब मिल कर सुवर्ण की पिचकारीयों में सुगंधित जल भर कर प्रभु को व्याकुल करने का प्रयत्न करने लगीं । तथा क्रीडा से उल्लसित मनवाली हो सतत परस्पर हंसने लगीं। इतनेही में आकाश में देववाणी हुई और वह सबने सुनी । " हे मुग्धा स्त्रियो ! तुम्हें मालूम नहीं कि इन प्रभु को पैदा होते ही चौसठ इन्द्रोंने एक योजन प्रमाण चौड़े मुखवाले हजारों बड़े बड़े कलशों से मेरुपर्वत पर स्नान कराया था उस वक्त उस असंख्य
प्रवाह से भी जो प्रभु व्याकुल न हुए, तो क्या अब तुम्हारी इन पिचकारियों के जल से वो व्याकुल हो जायेंगे १, अब नेमिप्रभु भी गोपियों और श्री कृष्ण पर पिचकारी चलाने लगे तथा कमल पुष्प की गेंदें उनकी छाती पर मारने लगे । इस प्रकार जलक्रीड़ा कर वे सब तालाव के किनारे आये और वहां प्रभु को एक सिंहासन पर बैठा कर वे सब गोपीओ उनको घेर कर खड़ी हो गईं। फिर उनमें से रुक्मिणी बोली- हे नेमिकुमार ! तुम निर्वाह चलाने के भय से विवाह नहीं कराते यह अयुक्त है, परन्तु तुम्हारे भाई समर्थ हैं, उन्होंने बत्तीस हजार स्त्रियों से विवाह कराया हुआ है और वे सब का निर्वाह करते हैं । सत्यभामाने कहा - ऋषभदेव आदि तीर्थकरों ने भी विवाह कराया था। राज्य भोगा, विषयसुख भोगे और उन्हें बहुत से पुत्र भी हुए थे एवं अन्त में वे मोक्ष भी गये; परन्तु तुम तो आज कोई नये ही मोक्षमार्गी बने हो, अतः हे अरिष्टनेमि ! तुम खूब | विचार करो । हे देवर ! तुम गृहस्थपन की सुन्दरता को जान कर बन्धुजनों को शान्त करो। फिर जाम्बवती तुर्त
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