________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir
प्रभु के मुखकमल से प्रगट हुए पवनद्वारा पाँचजन्य शंख की आवाज से वासुदेव के हाथीयों का समूह अपने बन्धन स्तंभों को उखेड़कर घरों की पंक्तियों को तोड़ता हुआ भागने लगा। तथा वासुदेव के घोड़े भी तुरन्त ही अपने बन्धन तोड़ कर अश्वशाला से भागने लगे। उस वक्त उस शंखनाद से सारा शहर अति व्याकुलता के साथ बहरा सा हो गया। इस प्रकार के शंखनाद को सुन कर 'आज कोई शत्रु पैदा हो गया है' ऐसे विचार से व्याकुल चित्तवाले श्रीकृष्ण महाराज तुरन्त ही आयुधशाला में आये। वहाँ पर नेमिनाथ प्रभु को देख कर मन में आश्चर्य मनाते हुए अपनी भुजा के बल की तुलना करने के लिए श्रीकृष्ण महाराजने प्रभु से कहा-हम दोनों अपने बल की परीक्षा करें। यों कह कर प्रभु को साथ ले वे मल्ल अखाड़े में आये । वहाँ पर प्रभुने श्रीकृष्ण महाराज को कहा-हे भाई! धुल में आलोट कर बल की परीक्षा करना अनुचित है। बल की परीक्षा करने के लिए तो आपस में एक दूसरे की भुजा का मोड़ना ही काफी है । दोनोंने यह बात मंजूर कर ली। प्रथम श्रीकृष्ण महाराजने अपना हाथ पसारा । प्रभु नेमिने उस हाथ को बैंत के या | कमलनाल के समान तुरन्त ही मोड़ दिया। फिर प्रभुने अपना हाथ लंबा किया। कृष्ण से जब जोर लगाने पर भी प्रभु का हाथ न मुड़ा तब हाथ पर श्रीकृष्ण ऐसे लटक गये जैसे कोई वृक्ष की शाखा पर बंदर लटकता है, उस वक्त खेद से मुख पर आई हुई दुगुनी श्यामता से हरिने यथार्थ ही अपना नाम हरि के (बन्दर के) समान कर दिया। जब अत्यन्त जोर लगाने पर भी प्रभु का हाथ जरा भी न मुड़ा तब मन में चिन्तातुर हो
1
For Private And Personal