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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद | ॥ ९८ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir भगवान् का परिवार ] उस काल और उस समय में श्रमण भगवन्त श्रीमहावीर प्रभु के इंद्रभूति आदि चौदह हजार (१४००० ) साधुओं की उत्कृष्ट साधु संपदा हुई। चंदनबाला आदि छत्तीस हजार (३६०००) साध्वियों की उत्कृष्ट साध्वी संपदा हुई। शंख, शतक आदि एक लाख उनसठ हजार (१५९०००) श्रावकों की उत्कृष्ट श्रावक संपदा हुई । तथा सुलसा, रेवती आदि तीन लाख अढार हजार (३१८०००) श्राविकाओं की उत्कृष्ट श्राविका संपदा हुई । ( यहाँ पर जो सुलसा लीखी है वह बत्तीस पुत्रों की माता नागभार्या समझना चाहिये और रेवती प्रभु को औषध देनेवाली जानना चाहिये) तथा सर्वज्ञ नहीं किन्तु सर्वज्ञ के समान वस्तुस्वरूप कथन करने के सामर्थ्यवाले एवं सर्वाक्षरसंयोग को जाननेवाले तीन सौ (३००) चौदहपूर्वियों की उत्कृष्ट संपदा हुई । अतिशय लब्धि को 'प्राप्त करनेवाले तेरह सौ (१३००) अवधिज्ञानियों की उत्कृष्ट संपदा हुई। संपूर्ण और श्रेष्ठ ज्ञानदर्शन को धारण करनेवाले सातसौ (७००) केवलज्ञानियों की उत्कृष्ट संपदा हुई । देव नहीं किन्तु देव सम्बन्धि ऋद्धि को विकुर्वने में समर्थ ऐसे सातसौ (७००) वैक्रिय लब्धिवालों की उत्कृष्ट संपदा हुई । तथा ढाई द्वीप और दो समुद्रों में पर्याप्ता संज्ञी पंचेंद्रियों के मनोगत भाव को जाननेवाले पाँच सौ (५००) विपुलमतियों की उत्कृष्ट संपदा हुई । विपुलमति उसको कहते हैं जो यह जानता हो - इसने जो घड़े का चिन्तन किया है वह सुवर्ण का बना हुआ है, पाटलीपुत्र में बना है, शरद् ऋतु में बना है, नीलवर्ण का है, इत्यादि सर्व भेद सहित चारों तरफ ढाई For Private And Personal छड्डा व्याख्यान. ॥ ९८ ॥
SR No.020376
Book TitleHindi Jain Kalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Sabha
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1949
Total Pages327
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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