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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir बारह महीनों के नाम हैं। तथा पूर्वांगसिद्ध, मनोरम, मनोहर, यशोभद्र, यशोधर, सर्वकामसमृद्ध, इंद्र, मृर्धाभिषिक्त, सोमनस, धनंजय, अर्थ, अर्थसिद्ध, अभिजित, रत्याशन, शतंजय, तथा अग्निवेश्य । ये पंद्रह दिन के नाम हैं। तथा उतमा, सुनक्षत्र, इलापत्या, यशोधरा, सौमनसी, श्रीसंभृता, विजया, विजयन्ती, अपराजिता, इच्छा, समाहारा, तेजा, अभितेजा, तथा देवानन्दा, ये पंद्रह रात्रियों के नाम हैं। तथा रूद्र, श्रेयान् , मित्र, वायु, सुप्रतीत, अभिचंद्र, माहेंद्र, बलवान् , ब्रह्मा, बहुसत्य, एशान, स्वष्टा, भावितात्मा, वैश्रवण, वारुण, आनन्द, विजय, विजयसेन, प्रजापत्य, उपशम गंधर्व, अग्निवेश्य, शतवृषभ, आतपवान् , अर्थवान् , ऋणवान् , भौम, वृषभ, सर्वार्थसिद्ध और राक्षस, ये तीस मुहत्तों के नाम हैं। जिस रात्रि में श्रमण भगवान् श्रीमहावीर प्रभु कालधर्म पाये, यावत् सर्व दुःखों से मुक्त हुए वह रात्रि स्वर्ग से आते जाते देव देवियोंसे प्रकाशवाली होगई । तथा कोलाहलमयी जिस रात्रि को श्रमण भगवान् श्री महावीर प्रभु कालधर्म पाये, यावत् सर्व दुःखों से मुक्त हुए उस रात्रि में गौतमगोत्रीय बड़े इंद्रभूति अणगार शिष्य को ज्ञातकुल में जन्मे हुए श्रीमहावीर प्रभु पर से प्रेमबन्धन टूट जाने पर अनन्त, अनुपम उत्तम केवलज्ञानदर्शन उत्पन्न हुआ। वह वृत्तान्त निम्न प्रकार है। [गौतमस्वामी का विलाप और केवलज्ञान] प्रभुने अपने निर्वाण समय गौतम को किसी ग्राम में देवशर्मा ब्राह्मण को बोध करने के लिए भेज दिया। For Private And Personal
SR No.020376
Book TitleHindi Jain Kalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Sabha
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1949
Total Pages327
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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