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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जानता ? तेरे संदेह का कारण प्रथम - " पुरुष एवेदं निं सर्व " इत्यादि अग्निभूतिने कहा था सो है, हमने पहले इसका उत्तर दिया है तुम्हें भी उसी प्रकार समझना चाहिमे । तथा 'पुण्यः पुण्येन कर्मणा पापः पापेन कर्मणा' पुण्य कर्म से पुण्य होता है और पापकर्म से पाप होता है इत्यादि वेद पदों से पुण्य पाप की सिद्धि होती है । यह नवमे गणधर हुए । Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir अब परभव मे शंका रखनेवाले मेतार्थ नामा पंडित को कहा- तू भी वेदार्थ नहीं जानता ? तुझे भी इंद्रभूतिने कहे हुए 'विज्ञानघन एवैतेभ्यो भूतेभ्यः' इत्यादि पदों द्वारा परलोक के विषय में संदेह है परन्तु इन पदों का अर्थ मेरे कथनानुसार विचार कि जिस से तेरा संदेह दूर होजाय । यह दशमे गणधर हुए । मेतार्य परलोक में शंका रखते थे । प्रभास को मोक्ष का संदेह था । फिर मोक्ष के विषय में शंकावाले प्रभास नामक पंडित को प्रभु कहते हैं- तू भी वेदार्थ को नहीं जानता ? "जरामर्यं वा यदग्निहोत्रं " इस पद से मोक्ष का अभाव प्रतीत होता है, क्यों कि जो अग्निहोत्र है वह 'राम' अर्थात् सदैव करना कहा है और अग्निहोत्र की क्रिया मोक्ष का कारण नहीं बन सकती, क्यों कि सदोष होने से कितनेएक को वध का कारण बनती है और कितनेएक को उपकार का । इससे मोक्षसाधक अनुष्ठान की क्रिया करने का काल नहीं बतलाया, इस कारण मोक्ष है नहीं, अर्थात् मोक्ष का अभाव For Private And Personal
SR No.020376
Book TitleHindi Jain Kalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Sabha
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1949
Total Pages327
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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