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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद | ॥ ६॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir अच्छे धान्य पैदा होते थे । अब यदि मेरे लड़के निश्चिन्त रह कर खेतमेंसे घास, तृण आदि न उखाड़ेंगे तो धान्य पैदा न होनेसे उन विचारों का क्या हाल होगा ? इस प्रकार सरलतासे अपना यथार्थ अभिप्राय गुरु के समक्ष कह दिया । गुरुने कहा कि - हे महानुभाव! तुमने यह दुर्ध्यान किया है, मुनियों को ऐसा ध्यान चिन्तवन नहीं करना चाहिये । गुरुके निषेध करने पर उसने तहत्ति कह कर मिच्छामिदुक्कडं दिया । ये दो दृष्टान्त प्रथम तीर्थंकर के समय के प्राणियों की जड़ता और सरलता को बतलाते हैं। अब श्रीवीर प्रभु के शासन के साधुओं के लिए भी दो दृष्टान्त देते हैं वक्र - जड़ पर दृष्टांत ( पहिला ) ( १ ) एक दिन श्रीवीर प्रभु के शासन के साधु मार्ग में एक नट का नाच देख बाहर से देर में आये । मालूम होने से गुरुने नटके नाच देखने का निषेध किया । फिर एक दिन वे रास्ते में नाचती हुई नटनी को देख कर आये । गुरुने देरी का कारण पूछा तब सत्य छिपा कर और ही उत्तर देने लगे। जब गुरुने तर्जना कर पूछा, तब उन्हों ने यथार्थ बात बतला दी । गुरुने धमकाया और कहा कि उस दिन निषेध किया था फिर भी तुम नटनी का नाच देखने क्यों खड़े रहे ? ऐसी शिक्षा देने पर उल्टा गुरु को ही वे उलहना देने लगे कि जब आपने नट का नाच निषेध किया था तभी नटनी के नाच का भी निषेध करना चाहिए था। इसमें हमारा क्या दोष है ? यह तो आपका ही दोष है जो उस वक्त आपने नदी का नाच देखना भी निषेध न किया । For Private And Personal प्रथम व्याख्या ॥ ६५
SR No.020376
Book TitleHindi Jain Kalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Sabha
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1949
Total Pages327
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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