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भी
व्याख्यान.
कल्पसूत्र हिन्दी बनुवाद।
॥ ८२॥
वह धन देकर और यह वीर प्रभु की प्रथम साध्वी होगी यों कहकर इंद्र चला गया। फिर अनुक्रम से जूंभिका ग्राम में इंद्रने प्रभु को नाठाविधि दिखलाकर कहा आपको अब इतने दिन में केवलज्ञान की उत्पत्ति होगी। में ढिक नामा ग्राम में चमरेंद्रने प्रभु को कुशल पूछा । वहां से प्रभु चम्पानगरी में पधारे ।
- अंतिम उपसर्ग - बहारवां चौमासा प्रभु षण्मास नामक ग्राम जाकर बाहर उद्यान में ध्यान लगाकर खड़े रहे । प्रभु के पास एक ग्वाल अपने बैल छोड़कर ग्राम में चला गया। फिर आकर उसने प्रभु से पूछा कि-हे देवार्य ! | मेरे बैल कहाँ हैं ? प्रभु के मौन रहने से क्रोधित हो उसने प्रभु के कानों में बाँस की सलाकायें ऐसी ठोक दी जिस से वे अन्दर परस्पर एक दूसरी से मिल गई और बाहर से अग्रभाग कतर देने से बेमालूम कर दी। प्रभुने त्रिपृष्ट के भव में जो शय्यापालक के कानों में तपा हुआ सीसा डालकर कर्म उपार्जन किया था वह अब वीर के भव में उदय आया था । वह शय्यापालक भी अनेक भव कर के यह ग्वाला बना था । वहाँ से | प्रभु मध्यम अपापा में गये। वहाँपर सिद्धार्थ नामक वणिक के घर भिक्षा के लिए आये हुए प्रभु को देख खरक नामा वैद्यने उन्हें शल्यसहित जाना । फिर उस वणिकने वैद्य को उद्यान में साथ लेजाकर उन सलाकाओं को प्रभु के कानों में से संडासी से खेंच निकाली। उनके निकालते समय प्रभुने ऐसी आराटी की जिस से सारा उद्यान भयंकर-सा बन गया । वहाँपर लोगोंने एक देवमंदिर भी बनवाया। फिर प्रभु संरोहिणी नामक
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