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भी
पांचा व्याख्यान
कल्पसूत्र हिन्दी बनुवाद ।
॥८१॥
भगवान का विलक्षण अभिग्रह द्रव्य से छाज के कौने में पड़े हुए उड़द के बाँक ले हों, क्षेत्र से देनेवाले के पैर देहली के अन्दर और एक पैर देहली से बाहर रखकर खड़ी हों, काल से जब सब मिक्षाचर निवृत्त होचुके हों, भाव से राजपुत्री पर दासपन प्राप्त हुआ हो, उसका मस्तक मुंडित हुआ हो, पैरों में बेड़ी पड़ी हों, रुदन करती हो और जिसे अट्ठम का तप भी हो यदि ऐसी कोई स्त्री आहार देगी तो ग्रहण करूंगा । ऐसा घोर अभिग्रह लेकर प्रभु रोज भिक्षा के लिए | जातेहैं परंतु अमात्यादियों के उपाय करने पर भी अभिग्रह पूर्ण नहीं होता।
उस वक्त शातानिक राजाने चंपानगरी का भंग किया, वहाँके दधिवाहन राजा की धारिणी नामा रानी और उसकी पुत्री वसुमती इन दोनों को किसी एक सुभटने कैद कर लिया । धारिणी को जब उसने यह कहा कि तुझे मैं अपनी पत्नी बनाऊंगा तब वह तो जीभ को चबाकर मृत्यु को प्राप्त हो गई, परन्तु वसुमती को पुत्री कह आश्वासन दे कौशाम्बीमें लाकर चौराहमें रख बेचनी शुरु की। वहाँ के धनावह नामक सेठने उसे मोल खरीद कर और चंदना नाम रखकर पुत्रीतया रक्खी । एक दिन चंदना सेठ के पैर धुला रही थी, उस वक्त उसकी चौटी पृथ्वी पर लटकती थी, सेठने अपने हाथ से उठाकर उसके केश ठीक कर दिये । यह देख मूलानामा सेठानीने विचारा कि मैं अब बूढी होने आई हूँ इस लिए यह युवती बालिका इस घर की सेठानी बनेगी। इस विचार से उसने चंदना का मस्तक मुंडाकर, पैरों में बेड़ी डालकर, उसे गुप्त स्थान में तालेके अन्दर
॥८१॥
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