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जिनदास को घर पर न देख उसकी आज्ञा विना ही उसका एक मित्र उन्हें अति बलवान् और सुन्दर समझ कर भांडीरवन यक्ष की यात्रार्थ गाड़ी में जोडने के लिए लेगया। उन बैलोंने आज तक कभी गाड़ी का जुवा देखा भी न था । उसने अधिक भार भर गाड़ी में जोड़कर उन्हें मार पीटकर ऐसे हाँके कि जिससे अनहिल बछड़ों की साँधे टूट गई। यात्रा कर चुपचाप ही उन्हें जिनदास के घर बाँध गया। जिनदासने आकर देखा तो उनकी आँखों से पानी पड़ता था। यह देख जिनदास की भी आँखों में आँसु निकल आये । अन्तिम समय जान कर जिनदासने उन्हें आहार पानी का परित्याग करा कर नवकारादि से उनकी निर्यापना करी । वे वहाँ से मृत्यु पाकर नागकुमार देव बने । वे नये ही उत्पन्न हुए थे, अवधिज्ञान से पूर्वोक्त वृत्तान्त जान तुरन्त आकर एकने नाव का रक्षण किया और दूसरेने उस सुहष्ट्र नामक देव को निवारण किया । फिर प्रभु के गुणगान करते तथा नाचते हुए महोत्सवपूर्वक सुगन्ध जल वृष्टि एवं पुष्पवृष्टि करके वे अपने स्थान पर चले गये।
दूसरा चातुर्मास भगवानने राजगृह नगर में नालंदा नामक महल्ले में एक जुलाहे की शाला के एक भाग में उसकी आज्ञा लेकर प्रथम मासक्षपण तप करके किया। वहाँ पर मंखलि नामक मंख (चित्रकला जाननेवाले मिक्षाचरविशेष ) की सुभद्रा नामा स्त्री की कुक्षी से बहुल नामक ब्राह्मण की गौशाला में पैदा होने से गोशालक नामधारी मंखकिशोर प्रभु के पास आया। वहाँ पर प्रभु को मासक्षपण के पारणे में विजय नामक सेठने कूर आदि विपुल भोजन विधि से बहराया, इससे वहाँ प्रकट हुए पंच दिव्यादि महिमा को देख
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