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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir पांचवां व्याख्यान. कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद। ॥६६॥ ला युद्ध का अखाड़ा है उसमें तुम विजय पताका ग्रहण करो, तिमिर रहित अनुपम केवलज्ञान को प्राप्त करो और पूर्व तीर्थंकरों द्वारा कथन किये हुए अकुटिल मार्ग से परिसहों की सेना को हण कर आप मोक्षरूप | परम पद को प्राप्त करो । हे क्षत्रियों में वृषभ समान! आप जय प्राप्त करो, जय पाओ । हे प्रभो! आप बहुत से दिनों तक, बहुत से पक्षों तक, बहुत से महीनों तक, बहुतसी ऋतुओं तक, बहुसी छमासियों तक, और बहुत से वर्षों तक उपसर्गों से निडर होकर, बिजली, सिंहादि के भयों को, क्षमाशीलता से सहन करते हुए विजय प्राप्त करो । तथा आपके धर्ममें विनों का अभाव हो । यों कहकर फिर जय जय के शब्द बोलने लगीं। अब श्रमण भगवान श्रीमहावीर स्वामी क्षत्रिय कुण्डनगर के मध्य से होकर हजारों नेत्र पंक्तियों द्वारा दीखते हुए, श्रेणिबद्ध मनुष्यों के मुख से वारंवार अपनी स्तुति सुनते हुए, हजारों ही हृदय पंक्तियों से आप जय पाओ, चिरकाल जीवोइत्यादि चिन्तवन कराते हुए, हजारों मनुष्यों के यह विचार करते हुए कि हम इनके सेवक मी बनजायें तो भी कल्याण हो, कान्ति रूप, गुणों से आकर्षित हो लोकसमूह जिसे अपना स्वामी बनाने की स्पृहा करते थे, जिसे हजारों मनुष्य अंगुलियाँ उठा उठा कर दिखला रहे थे कि भगवान वे जा रहे हैं । दाहिने हाथ से हजारों स्त्री पुरुषों के नमस्कार ग्रहण करते हुए हजारों ही मानव समूह के साथ आगे बढ़ते हुए, हजारों ही भवन पंक्तियों से आगे बढ़ते हुए, तथा बीणा, तलताल, गीत, वाजिंत्रों के एंव मधुर मनोज्ञ जय जय उद्घोषणा से मिश्रित हुए मनुष्यो के अति कोमल शब्दों से सावधान होते हुए । समस्त छत्रादि ॥६६ ॥ For Private And Personal
SR No.020376
Book TitleHindi Jain Kalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Sabha
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1949
Total Pages327
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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