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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद । ॥५२॥ - पांचवां व्याख्यान। का पांचवा -> Cric व्याख्यान. महावीर भगवान् का जन्ममहोत्सव । जिस समय भगवान् महावीर का जन्म हुआ, उस समय इस पवित्र आत्मा के प्रादुर्भाव से केवल क्षत्रीयकुण्डपुर ही नहीं, क्षणभर के लिए समस्त संसार लोकोत्तर प्रकाश से प्रकाशित हो गया था और आकाश पा मण्डल में दुंदुभी बजने लगी थी। खास विशेषता तो यह थी कि सदा दुःख के भोक्ता नरक के जीवों को भी क्षणमात्र आनन्द प्राप्त हुवा तथा समस्त पृथ्वी उल्लसित हुई और सर्वत्र आनन्द आनन्द दृष्टिगोचर हो रहा था। भगवान् का जन्म होते ही सब से पहले छप्पन दिककुमारियों के आसन कम्पायमान हुए, अवधिज्ञान से प्रभु का जन्म अवसर जान कर हर्षित होती हुई यहां पर आकर क्रमशः इस प्रकार भक्ति करने लगीं: १. भोगकरा २. भोगवती ३. सुभोगा ४. भोगमालिनी ५. सुवत्सा ६. वत्समित्रा ७. पुष्पमाला ८. अनिन्दिता इन आठ दिक्कुमारियोंने अधोलोक से आकर प्रभु को और प्रभु की माता को नमस्कार कर संवर्तक वायु (गोल पवन )द्वारा योजनप्रमाण पृथवी को शुद्ध और सुगन्धित बना कर एक सूतिकागृह( जापा-घर)। की रचना की। ॥५२॥ For Private And Personal
SR No.020376
Book TitleHindi Jain Kalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Sabha
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1949
Total Pages327
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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