________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir
हिदायत बुतपरस्तिये जैन दिया न किसीमत्रका हवाला दिया, सिर्फ ! थोडासा लिखाण लिखकर चैत्यशब्दके वारेमें कुछ पुछा है. _ विवेचनपत्रकी शुरूआतमें मुनि कुंदनमलजी लिखते है किदेखिये ! पितांबरी मूर्तिपूजक शांतिविजयनीको हमारे स्वधर्मी सुश्रावक बंब खूबचंदजी साकीन ऊन्हेल-मुल्क मालवेवालेने जैनपत्र तारिख २९-५-११ के अंकद्वारा (२२) सवाल पूछे थे और उत्तर जैनसिद्धांतोंके मूलपाठसे मागेथे, उक्त प्रश्नोके जवावम शांतिविजयजीने सनम परस्तिये जन-इस नामकी किताब छापके जाहीर किइ है.
(जवाब.) बेशक ! किताब सनम परस्तियेजैन मेरी तफैस बनाइ गइ है, जोकि जैनश्वेतांबरश्रावक धुलजी गणेश-साकीन महेंदपुर मुल्क मालवेने फायदेआमके छपवाकर जाहिर किइ है, इसमें मेने जो बाइससवालोके जवाब दिये है, कइजगह जैनसिद्धांतोके मूलपाटभी दिये है, जिनको शकहो मजकुर किताब मंगवाकर देखे, जैनसिद्धांतोके मूलपाठही मानना या वतीसमूत्रहीं मानना जैसा किसी जैनसिद्धांतमें नहीं लिखा, अगर लिखा है तो कोई पाठ बतलावे, मेरेसे कोई महाशय जैनसिद्धांतोके मूलपाठ लेना चाहे, तो वे अपने लेखमे मूलमूत्रके पाठदेकर पेंश आवे, आप पाठ देना नहीं, और दुसरोसें पाठ मांगना, यह कौन इन्साफे है ? जैनसिद्धांतोमें सूत्र, भाष्य, टीका, नियुक्ति और चूर्णि ये पंचांगी मंजुर रखना फरमाया, मूलसूत्रोपर जो वालावबोध यानी टबा बना है, टीकाके आधारसे बना है, टीकाकों मंजुर नहीं रखना फिर टवाकों मंजुर क्यों रखना ? कइजगह मूलमत्रमें जो बात नहीं है और टवेमे है, बतलाइये ! वे बाते कहांसे लाइ गई ? अगर कहा जाय टीकासे लाइ गई है, तो फिर टीकाकों मंजुर क्यों न किई जाय? नंदीमत्रमे पेंतालीस जैनागमके नाम लिखे है, और एवमादि
For Private And Personal Use Only