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(हिदायत बुतपरस्तिये जैन.)
(जिसकों,) जैनश्वेतांबर धर्मोपदेष्टा विद्यासागर न्यायरत्न महाराज
शांतिविजयजीने मुरतिब किया.
इसमे मुनि कुंदनमलजीके लेखका जवाब और
मूर्तिपूजाके बारेमें उमदा दलिले दर्ज है.
( शुरुआत किताब.)
शेयर.11 रौनके महताबभी देखो, गर्मीये आफताबभी देखो; और हासिलहै मुफ्त घरबैठे, लो! हमारी किताबभी देखो. १
जैनमजहबमें जिनमंदिर और जिनमूर्तिका मानना कदीमसे चला आया, भरतराजाने तीर्थअष्टापदपर चौईसतीर्थकरोके मंदिर तामीर करवाये, और जमाने तीर्थंकर महावीरस्वामीके गौतमगणधर उनकी जियारतकों गये, अमर जैनमजहबमें मंदिरमूर्तिका मानना मना होतातो ऐसापाठ क्यों होता? जब गौतमस्वामी जैसे जैनमुनि जिनको गणधरपदवीथी-तीर्थकी जियारतकों गये तो, दुसरे जैनमुनि क्यों न जावे ? मूर्तिपूजासे एक नागकेतु महाशयकों केवल ज्ञान पैदा हुवा, और जिनमूर्त्तिके दर्शनसे आर्द्रकुमारको जातिस्मर्ण ज्ञान हुवा. तीर्थ शंखेश्वरपार्श्वनाथ, तीर्थ केशरीयाजी और तीर्थ अंतरिक्षजीमें निहायत पुरानी जैनमूर्ति मौजूद है, अगर जैन
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