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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir ३० हिदायत बुतपरस्तिये जैन. अपने शरीरपर लगनेसें पापरुपीरज दुर होगी, इन इन सबबोसे तीर्थोंकी जियारत और मूर्तिपूजा फायदेमंद चीज सावीत होती है. ___ अगर कोई इस दलिलकों पेश करे कि-तीयामें गये और मनःपरिणाम नही सुधरे तो क्या फायदा हुवा ? ___ (जबाव.) गुरुमहाराजको वंदना करने गये और मनःपरिणाम नहीं सुधरे तो बतलाइये! क्या! फायदा हुवा? दरअसल ! देवगुरुधर्मकी जगह मनःपरिणाम सुधरनेका स्थान है, इतनेपरभी किसीके मनःपरिणाम नही सुधरे तो उस जीवके कर्मोका दोष है, यूतो दीक्षा लेनेपरभी किसीके मनःपरिणाम नही सुधरे तो इसमे कोई क्या करे, उस जीवके पापकर्मका ऊदय जानना, तीर्थकरदेवकी वानी सुनकर अभव्यजीवके मनःपरिणाम नहीं सुधरे तो इसमें तीर्थंकरकी वानीका क्या दोष? ऊस जीवके अशुभकर्मका दोष है, ऐसा जानना. किताब-हिदायत बुतपरस्तिये जैनका लिखान खतम होता है, मुनि कुंदनमलजीके विवेचनपत्रका जवाबभी इसमें देदिया है, आपलोग पढे, और अपने दोस्तोकोंभी दिखलावे, में ऊमेद करता हुं-सबकों यह किताब पसंद होगी और मूर्तिपूजाकी संबुतीपर ऊमदा दलिले मीलेगी. जब कल्म-जैनश्वेतांबर धर्मोपदेष्टा विद्यासागर न्यायरत्न महाराज शांतिविजयजी, मुकाम-पाचोरा-खानदेश. For Private And Personal Use Only
SR No.020373
Book TitleHidayat Butparstiye Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherPruthviraj Ratanlal Muta
Publication Year1916
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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