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हिदायत बुतपरस्तिये जैन.
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जैनरामायण में वयान है कि- रामचंद्रजी की भेजी हुई अंगुठीसे सीताजीकों लंका में खुशी पैदा हुई और सीताजी के भेजे हुवे कंकण से किष्कंधा वेठे हुवे रामचंद्रजी कोंभी खुशी हासिल हुई, समजसको तो समजलो ! जडचीजने चेतनकों कितनी खुशी पैदा किई ?
पांडवचरितमें बयान हैं, - एक भीलने द्रोणाचार्यजी की मूर्ति बनाकर ऊस मूर्त्तिके सामने अदव किया, ऊस मूर्त्तिकों गुरूसमान मानी और उससे धनुर्विद्याका इल्म हासिल किया ? देखलो ! बदौलत ऊस मूर्त्तिके ऊस भीलकों कितना फायदा हुवा ?
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अगर कोई इस मजमूनकों पेश करे कि निराकार परमात्माकी साकार मूर्त्ति कैसे बनाते हो ? जवाब में मालुम हो, निराकारकी मूर्ति नही बनाई जाती, साकारकी मूर्त्ति बनाई जाती है. तीर्थंकरदेव जब देहधारी थे ऊस हालत की मूर्ति बनाई जाती है, निराकार हालतकी नही बनाई जाती, जिसने कागज स्याही के बने हुवे धर्मपुस्तक माने ऊसने मूर्ति एकदफे नही हजारदफे मानी समजो, कोई पुस्तकको मानते है, कोई किसी पहाडको, कोई चरनको और कोई मंदिरमूर्तिकों मानते है, देखलो ! बिना स्थापनाके किसीका काम नहीं चला, सबुत हुवा नाम स्थापना, द्रव्य और भाव ये चारो निक्षेपे काविल माननेके है, गुरुके आसनपर अगर अपना पांच लगजाय तो कहते हो, बेअदबी हुई, कहिये ! आसन एक जडवस्तु थी, जडकी बेअदबी से गुरुकी बेअदबी कैसे हुई ? अगर कहा जाय जडमें चेतनकी स्थापना मानी गई है तो फिर मूर्त्तिमभी परमात्मा की स्थापना मानी गई है ऐसा कहना कौन इन्साफ हुआ ? जब तीर्थकरोका जन्म होता है इंद्रदेवते मीलकर ऊनका जन्म उत्सव करते है, खयाल करो ! ऊस वख्त वे भावतीर्थकर तो हुवे नहीं थे. द्रव्यतीर्थंकरका उत्सव ऊनोने किया या नहीं? अगर द्रव्यतीथकरका उत्सव करना फायदे
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