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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir २५ हिदायत बुतपरस्तिये जैन महानिशीथमूत्र काविल मंजुर करनेके है, बत्तीसमूत्रही मानना और दुसरे नही मानना यह किसी जैनागममें नही लिखा, स्थानकवासी मजहबके श्रावकलोग अपने धर्मगुरुवोकों वंदना करने आनेवाले श्रावकोकों रसोई जिमावे और स्वधर्मी जानकर भक्ति करे तो बतलाइगे ! पुन्य होगा या पाप ? अगर कहा जाय पुन्य होगा, तो फिर स्वधर्मी वात्सल्य करनेमें पुन्य क्यों नही ? अगर कहा जाय दया सुखकी वेलडी है, और हिंसा दुखकी वेलडी है, तो जवाबमें मालुम हो, जैनमुनि विहार करते वख्त जब नदी ऊतरेगे और उनके पांवोसें जो पानीके जीव मरेगें यह दयामें समजना या हिंसामे ? अगर कहा जाय ! नदी ऊतरना ईरादे धर्मके तीर्थकरोका हुकम है, तो फिर जिनमंदिर बनाना तीर्थयात्रा जाना यह ईरादे धर्मके हुकम नहीं है क्या? देखिये ! ईरादेकी सडक कैसी मजबूत है कि-विना इसके काम नहीं चलता, जैनमुनि जब आहार लेनेको गृहस्थोके घर जायगे तो उनके शरीरसे जो वायुकाय वगरा जीवोकी हिंसा होगी, यह दयामें समजना या किसमे ? दीक्षाके जलसेमें बाजे वजवाना, जुलुस निकालना यह दयामे समजना या किसमे ? स्थानक बनानेमे पृथवी, पानी और अग्निकायके जीवोंकी हिंमा होगी यह दयामें समजना या किसमे ? इसका कोई महाशय जवाः देवे. दरअसल ! जहां इरादा शुभ है वहां भावहिंसा नही, और विना भावहिंसाके पाप नहीं, यह सिधी सडक है. ____ अगर कोई इस दलिलकों पेंश करे कि-पथरकी गौ जैसे दुध नही देती, वैसे पथरकी मूर्ति मुक्ति कैसे देयगी ? (जवाव. जैसे कागज स्याहीके बने हुवे जडपुस्तक बोलते नही तो मुक्ति कैसे देयगे? अगर कहा जाय पुस्तकके बांचनेसे ज्ञान होगा तो जवाबमें मालुप हो, इसीतरह मूर्त्तिके दर्शन करनेसे For Private And Personal Use Only
SR No.020373
Book TitleHidayat Butparstiye Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherPruthviraj Ratanlal Muta
Publication Year1916
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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