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हिदायत बुतपरस्तिये जैन. जिनप्रतिमाकी पूजामें अगर आरंभ मानाजाय तो फिर बतलाइये ! जैनमुनिकी दीक्षाके जलसेमें आरंभ क्यों नही ? अगर कहा जाय दीक्षा जलसेमें इरादा धर्मका है. इसलिये भावहिंसा नहीं तो फिर जिनमतिमाके जलसेमें रथयात्रामें अष्टान्हिका महोछवमें भी इरादा धर्मका है उसमें पाप कैसे लगेगा ? अगर कहा जाय हम भावनिक्षेपा मंजुर रखते है, तो फिर जैनमुनिका वेप देखकर वंदन क्यों करना? क्योंकि उनके दिलका भाव कैसा है यह शिवाय अतिशयज्ञानीके दुसरा कौन जानसकता है ? गुरूमहाराजके आसनकों या तख्नको अपना पांव लगजाय तो गुनाह हुवा समजते हो सोचो! यह एक तरहकी जडवस्तुकी इज्जत हुई या नहीं? जड वस्तुकी इज्जत किइ या ऊसकों मंजुररखी वात एकही हुई.
किसी जैनमुनिकों कोई श्रावक एक गांवले दुसरे गांव वंदना करनेको जावे ऊसवख्त ऊसगांवके श्रावक ऊनको भोजन जिमावे तो बतलाइये ! जिमानेवालेको पुन्य होगा या पाप ? अगर कहा जाय ईरादा स्वधर्मीकी भक्तिका था इसलिये आवहिंसा नही तो फिर इसीतरह इरादेपर बात रखीये, किसी जैनमुनिका इंतकाल होजाय और उनके शरीरका अग्निसंस्कार किया जाय उसमें पुन्य समजना या पाप? कई जगह देखागया है उस जैनमुनिके मृतकलेवरके विमानको जव श्मशानमें लेजाते है ऊसवख्त ऊस विमानके आगे रुपये पैसे उछालते हुवे मयजलसेके लेजाते है,
और खुशबूदार चिजोके साथ अग्निसंस्कार करते है. कहिये ! अग्निसंस्कार करनेवाले श्रावकोको पुन्य हुवा या पाप? अगर कहा जाय ईरादा गुरुभक्तिका है इसलिये भावहिंसा नहीं और विना भावहिंसाके पाप नहीं तो यही बात दुसरे धर्मकार्य के लिये क्यौं न समजी जाय ? मृतकलंबर तो जड है, जड वस्तुकी भक्ति क्यों करना ? कई श्रावक इसवातका अनुमोदन करते है कि अमुक
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