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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir हिदायत बुतपरस्तिय जैन ___ आगे मुनि कुंदनमलजी अपने विवेचनपत्रमें बयान करते है, शयंभवमूरिका बनाया हुवा दशवकालिकसूत्र और शामाचार्यका बनाया हुवा पनवणासूत्र क्यों मंजुर रखा गया ? यहांपे सहज सवाल पैदा होनेका वख्त है कि-अगर उक्त दोनो सूत्रोके नाम श्रीजैनके प्राचीन असली सिद्धांतोमें दर्ज होवेगे तो शांतिविजयजीका कथन साफ खोटा है ऐसा निश्चय होगा. (जवाब.) शांतिविजयजीका कथन खोटा जव ठहरसकता है कि-अगर मुनि कुंदनमलजी दशवकालिकमूत्रको और प्रज्ञापना सूत्रकों गणधररचित सावीत करदेवे, आचार्योंके बनाये हुवे दशवैकालिक और प्रज्ञापनासूत्रको मंजुर रखते हो तो फिर आचार्योंकी बनाइ हुई टीका, भाष्य, नियुक्ति और चूणि क्यों नहीं मंजुर रखना ? इसका कोई जवाब देवे, अगर कहाजाय नंदीसूत्रमें दशवैकालिक और प्रज्ञापनासूत्रके नाम लिखे है इसलिये हम मानते है, तो जवाबमें मालुम हो, नंदीसूत्रमें पैतालिसआगम वगेराके नाम भी लिखे है उनकोभी मानना चाहिये. फिर मुनि कुंदनमलजी अपने विवेचनपत्रमें तेहरीर करते है, इसके अलावा शांतिविजयजी नियुक्ति माननके वास्ते कोशीश करते है, मगर नियुक्तिमें जो जो अधिकार सावधाचार्योने दर्ज किये है वह सर्व अधिकार श्रीजैनके एकादशांगादि ताडपत्रों के लिखित प्राचीन असली सिद्धांत अगीकार करेंगे, वह नियुक्ति माननेमें आवेगी. (जवाब.) ताडपत्रपर लिखित जैनके एकादशांगादि प्राचीन सिद्धांत मंगवाकर देख लिजिये, उनमें नियुक्तिका मानना लिखा है या नहीं ? ताडपत्रपर लिखित जैनके प्राचीन सिद्धांत के बारेमें हकीकत सुनिये ! तीर्थकर महावीर निर्वाणके वाद (९८०) वर्स पीछे जमाने देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमणके वल्लभी नगरीमें ताडपत्रोपर For Private And Personal Use Only
SR No.020373
Book TitleHidayat Butparstiye Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherPruthviraj Ratanlal Muta
Publication Year1916
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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