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[ ७ ]
॥ अथ श्री चतुर्विंशति जिन स्तुति || [ वसंततिलका छंद ]
हरनार भ्रांति;
श्री तीर्थराज विमलाचल नित्य वंदो, देखी सदा नयनथी ज्यम पूर्ण चन्दोः पूजे मली सुखरो नरनाथ जेने, धोरी सदा चरणलंछन मांहि तेने ॥ १ ॥ श्रेयांसना घर विषे रस इक्षु लीधो, भिक्षा ग्रही निज प्रपौत्र सुपात्र कीधो ; माता प्रते विनयभाव घरी प्रभुए, अर्घ्यं अहो परम केवल श्री विभु || २ || देवाधिदेव गजलंछन चन्द कान्ति, संसार - सागरतणी एवा जिनेश्वरaणा युगपाद पूजो, दीठो नहि जगतमां तुम तुल्य दूजो ॥ ३ ॥ जन्म्यातणी नयरी उत्तम जे अयोध्या, त्राता नरेश प्रभुना जितशत्रु योद्धाः देदीप्यमान जननी विजया स्वीकारी, सेवो सदा अजितनाथ उमंगकारी ॥ ४ ॥ बाधे न केश शिरमां नख रोम व्याधि, प्रस्वेद गात्र नहि लेश सदा समाधिः छे मांस शोणित अहो ! अति श्वेतकारी, हे स्वामि संभव ! शुं संपद गात्र तारी ॥ ५॥
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