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[ शार्दूलविक्रीडितम् ] संवच्चंद्रहयांक सोमकमिते (१९७१) पौषाहमासे सिते
पक्षे सनवमीदिने भृगुसुते वारेचतगामके प्राप्याज्ञां स्वगुरोः सुमुक्तिविमलेनाशु प्रक्लसं मुदा
स्तोत्रं मग्गरवाटके विजयतां यावन्मृगांकारुणौ ॥९॥
॥ इतिश्री माणिभद्रस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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