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[ ७४ ]
श्रीमद् पंन्यासप्रवर श्रीमुक्तिविमलजीगणीकृतम्
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|| श्री सरस्वती स्तोत्रम् ॥
[ शार्दूलविक्रीडितवृत्तम् ]
ॐ ह्रीं श्रीं प्रथमा प्रसिद्धमहिमा विद्वज्जनेभ्योहिता, ऐ की हम्लो सहिता सुरेन्द्रमहिता विद्याप्रदानान्विता । शुच्याचारविचारचारुरचना चातुर्यचक्राञ्चिता, जिह्वाग्रे मम सावसत्वविरतं वाग्देवता सिद्धिदा ॥ १ ॥
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ॐ ह्रीं श्रीं सहितावषद्वययुता स्वाहानमः संयुता, क्की ब्ली चरमागुणानुपरमा भास्वत्तनू सद्रमा |
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खी ही वरजापदत्त सुमतिः स्तो ऐ सुबीजान्विता, जिह्वाग्रे मम सावसत्वविरतं वाग्देवता सिद्धिदा ॥ २ ॥
क्षाँ क्षौ क्षू लसदक्षराक्षरगणैर्याध्येयरूपा सदा,
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हाँ ह्रीं हूँ कलिताकला सुललिता ही ही स्वरूपा मुदा ।
चंचचंद्रमरीचिचावदना स्वष्टार्थसार्थप्रदा, जिह्वाग्रे मम सावसत्वविरतं वाग्देवता सिद्धिदा ॥ ३ ॥
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