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[१०] जे कर्म वैरी अमने बहु पीडनारा, ते कर्मथी प्रभु तमेज मुकावनारा; संसारसागरथकी तमे तारनारा, श्री धर्मनाथ पद शाश्वत आपनारा ॥ १७ ॥ श्री विश्वसेन नृपनंदन दीव्य कान्ति, माता सुभव्य अचिरा तस पुत्र शान्ति; श्री मेघना भव विषे सुर एक आवी, पारेव सिंचनकनुं स्वरूपा बनावी ॥ १८ ॥ पारेवने अभय जीवितदान .आप्यु, पोतात' अति सुकोमल मांस काप्युं: तेवा महा-अभयदानथी गर्भवासे, मारी उपद्रव भयंकर सर्व नासे ॥ १९ ॥ श्री तीर्थनायक थया वली चक्रवर्ती, बन्ने लही पदवीओ भव एकवर्ती; जे सार्वभौम पद पंचम भोगवीने, ते सोलमा जिनतणा. चरणे नमीने ॥ २० ॥ चौराशी लक्ष गज अश्व रथे करीने, छन्नु करोड जन लश्कर विस्तरीने तेवी छते अति समृद्धि तजी क्षणिके, श्री कुंथुनाथ जिन चक्री थया विवेके ॥ २१ ॥ रत्नो चतुर्दश निधान उमंगकारी, बत्रीस बद्ध नित नाटक थाय भारी;
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