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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनगारधर्मामृतवर्षिणाटीका अ. ३ जिनदत्त-सागरदत्तचरित्रम् ६६५ निस्सरतः प्रतिष्क्रिम्य 'हत्थसंगल्लिना-अन्योन्यं हस्तावलम्बनेन सुभूमिभागे उद्याने बहुषु 'आलिघरएस' आलिगृह के षु श्रेणिबद्धगृहाकारपरिणतवनम्पतिविशेषनिकुञ्जषु च-पुनः ‘कयलीवरेसु' कदली गृह केषु-कदली निकुन्जेषु च 'लयाघरएसु' लतागृहकेषु-चंपकाशोकादिलतागृहेषु च 'अच्छणघरएम' आसनगृहकेषु आसनं-उपवेशनम् तेषां गृहेषु यदा तदा जना आगत्य सुखासिकयोपविशन्ति यत्र तत्र च 'पेच्छणघरएस' प्रेक्षणगृह केषु-प्रक्षण-प्रेक्षणकं तस्यगृहेषु-गत्रागत्य जना नाटकादिकं कुर्वन्ति प्रेक्षन्ते च तेषु 'पसाहणघरएमु य प्रसाधनगृहकेषु प्रसाधन मण्डमं यत्रागत्य जना स्वं परं च मण्डयन्ति तेषां गृहेषु 'मोहणघरएसु' मोहनगृहकेषु-विलासगृहेषु 'सालघरएम' शाला गृहकेषु शाला शाखा तासां गृहेषु वस्त्रगृहेषु वा' जालघरएम' जालगृहकेषुजालिकान्वितगृहेषु यत्राभ्यन्तरस्थिता बहिः स्थित ने दृश्यन्ते किन्तु अन्तः गणिका के साथ (थूणामंडवाओ पडिनिक्खमंति) उस स्थूणामंडप से बाहर निकले (पडिनिक्खमित्ता) बाहर निकल कर (हत्थसंगेल्लीए) हाथ में हाथ मिलाए हुए वे (सुभूभिभागे उजाणे बहुसु आलिघरएसुय) उस सुभूमिभाग उद्यान में अनेक श्रेणिवद्ध गृहाकार परिणत हुए वनस्पति विशेषों के निकुंजों में (कयलीघरएमु य लयावरएसुय) कालीगृहों में और लतागृहोमें (अच्छण घरएमु य) यदा कदा आई हुई जनताको बैठने के लिये बनाये हुए आसन गृहों में(पेच्छणघरएसुय) जहां पर आकर के जन नाटक आदि करते हैं और देखते हैं उन प्रेक्षण घरों में (पसाहणघरएस य) प्रसाधन गृहों में-जहाँ आकर के मनुष्य अपने को और दूसरो को अलंकारो से विभूषित करते हैं ऐसे घरोंमें (मोहणघरएमुय) विलास गृहो में (सालघरपसु य शालो घरों में (जालघरएम य) जालिकान्वित घरों में जिनके भीतर रहे हुए (पडिनिक्खमित्ता) मा२ जाने (हत्यसं गेल्लीए) डायमा डाय नाभीन तमा (सुभूमीभागे उज्जाणे बहसु आलिघरएमु य) सुभूमिमा उद्यानमा मासा ઘણા શ્રેણિબદ્ધ ઘરના આકાર જેવા વનસ્પતિ વિશેષથી બનાવવામાં આવેલા નિકું જેમાં (कयलोघरएमु य लयाघरएसु य) ४४ी लामा, तामा , (अच्छणघर. एसु य) अपानवा भावता सामासिनेमेसवा माटे मनापामांसासा सासनलमा (पेच्छणघरएसु य) भासो यो मावीन नाट वगेरे ४२ छ भने तु ते॥ प्रेक्षागृहमा (पसाहणघरएमु य) प्रसाधन गृडामा मेटयां माणुसे पातानी जतने भने भीमाने शारे छ, ते। घरोमां, मोहणघरएमु य विलासखामा (सालघरएम य) Pामा (जालघरएमु य) जीमावा घशभा मेट For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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