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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ६७२ ज्ञाताधर्मकथा सुधर्मास्वामी जम्बू स्वामिनमाह - ' एवं खलु जम्बू इत्यादि - मूलम् - एव खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी होत्था वन्नओ, तीसेणं चंपाए नयरीए बहिया उत्तर रत्थि मे दिसिभाए सुभूमिभाए नामं उज्जाणे होत्था, सव्वोउ य पुप्फफलसमिद्धे सुरम्मे नंदणवणे इव सुह सुरभिसीयलच्छायाए समणुबद्धे, तस्स णं सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स उत्तरओ एगदेसंमि मालुया कच्छए वन्नओ, तत्थ णं एगा वणमऊरी दो पुट्ठे परियागये पिडी पंडुरे निव्वणे निरुवहए भिन्नमुटुप्पमाणे मऊरी अंड पसवइ पसवित्ता सरणं पक्खवाएणं सारक्खमाणी संगोवाणी संविट्टेमाणी विहरइ ॥ सू. २ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ' एवं खलु जम्बू, इत्यादि टीका -- तस्मिन काले तस्मिन् समये चम्पानाम नगरी आसीत्, वर्णकः =वर्णनग्रन्थः चम्पानगर्या वणनं प्रागुक्तम्, 'तीसेणं' तस्याश्चम्पाया टीकार्थ - - ( भंते ) हे भदंत ( जंइणं समणें भगवया महावीरेणं) यदि श्रमण भगवान महावीरने (व्हायाधम्मकहाणं विज्ञ्य अज्झयणस्स ) ज्ञाता धर्म कथा के द्वितीय अध्ययन का ( अयमट्ठे पण्णत्ते ) यह भाव -अर्थ प्ररूपित किया है तो ( तदअस्स णं भते ! णायज्झयणम्स के अड्डे पणसे ) तृतीय ज्ञाताध्ययन का क्या अर्थ प्रकट किया हैं । इस प्रकार जंबू स्वामी की बात सुनकर सुधर्मा स्वामीने उनसे कहा कि - " मू. " टोकाथ - (भंते ) हे लहंत ! ( जइणं समणेणं भगवया महावीरेणं श्रमागु भगवान महावीरे (ह्रायाधम्मकहाणं वियअज्झयणस्स) ज्ञाता धर्म स्थाना जीन्न अध्ययनन। (अयमट्ठे पण्णत्ते) या भाव-अर्थ निरूपित यो छ, तो ( तइअस्स णं भंते ! णायज्झगणस्स के अड्डे पण्णत्ते) त्री ज्ञाता अध्ययनना શે! અથ બતાવ્યા છે? આ રીતે જ ખૂ સ્વામીની વાત સાંભળીને સુધર્માસ્વાંમીએ તેમને કહ્યું-કે પ્રસૂત્ર ૧ For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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