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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ६६४ ज्ञाताधर्मकथासूत्रे क्षयेण स्थितिक्षयेण भवक्षयेण अनंतरं' अनन्तरम् - अन्तररहितं व्यवधान - रहितं चयं =शरीरं 'चइत्ता' त्यकत्वा महाविदेहे वर्षे सेत्स्यति यात्रत् - यावच्छब्देन भोस्ते मोक्ष्यति परिनिर्वास्यति, सर्वदुःखानामन्तं करिष्यति । सु. १३ | Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मूलम् - जहाणं जंबू ! धण्णं नो धम्मो त्ति वा जाव विजयस्स तक्करस्स तओ विउलाओ असणपाणखाइमसाइमाओ संविभागे कए, नन्नत्थ सरीरसारक्खणट्टाए । एवामेव जंबू ! जेणं अम्हं निग्गंथे वा निग्गंथी वा जाव पव्वइए समाणे ववगयण्हाणुम्मद्दणपुष्पगंधमळालंकारविभूसे इमस्स ओरालिय सरीरस्य नो वन्नहेउं वा रूवहेडंविसयहेउं वा असणं पाणं खाइमं साइमं आहारमाहारेइ, नन्नत्थ णाणदंसणचरित्ताणं वहणयाए, से णं इहलोए चैव बहूणं समणाणं समणीणं सावगाण य साविगाणं य अच्चणिजे वंदणिज्ज, पूयणिज्जे, पज्जुवासणिज्जे भवइ, परलोए वि य णं नो बहूणि हत्थच्छेयणाणि य कन्नेच्छेयणाणि य नासाच्छेयणाणि य, पल्य की स्थिति हुई । (से णं धन्ने देवे ताओ देवलोयाओ आउकएभत्र क्ख इक्खण' अनंतर चयं चहला महाविदेहे वासे सिज्झिटिइ जात्र सव्वदुक्खाणमंत करेहिंह) वे धन्यदेव उस देवलाक से आयु के क्षय से, स्थिति के क्षय से भव के क्षय से, अनंतर शरीर को छोडकर महाविदेह क्षेत्र में (उत्पन्न होकर वहां से सिद्ध पद प्राप्त करेंगे । यहाँ यावत् पद से 'भोत्स्यते मोक्ष्यति, परिनिर्वास्यति सर्व दुःखानामन्तं कारिष्यति' इस पाठका संग्रह हुआ है | |सूत्र १३ || यस्य भेटसी था. (सेणं धन्ने देवे ताओ देवलोयाओ आउक्खएणं भत्रक. एणं टिनए अणतरं चयं चन्ता महाविदेहे वासे सिंज्झिहिह जाव सच्चदुवाणमंत करेहिs) ते धन्यदेव ते सोउथी आयुष्य क्षय, स्थिति क्षय भने लावना ક્ષય થયા પછી શરીરના ત્યાગ કરીને મહાવિદેહ ક્ષેત્રમાં ઉત્પન नेत्यां सिद्ध यह भेजवशे. अडी' ‘यावत्' पहथी 'भोत्स्य ते मोक्ष्यति, परिनिर्वास्यति सर्वदुःखा नामन्तं करिष्यति' मा पानी संग्रह थयो छे. ॥ सू. १३॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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