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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६२८ ज्ञाताधर्मकथासो नयनपूर्वकं बन्धन यम्य स तां कुर्वन्ति कृत्वा देवदत्तम्य दारकम्याभरणं गृहन्ति, गृहीत्वा विजस्य तस्करम्य ग्रोवायां वघ्नन्ति बन्द्धा मालुका कक्षकात् प्रतिनिष्क्रामन्ति, प्रतिनिष्क्रम्य यत्रैव राजगृहं नगरं तपागच्छन्त, उपा. गत्य राजगृहं नगरमनप्रविशन्ति, अनुपविश्य गजगृहे नगरे श्रङ्गाट कात्रक कप्कचत्व महापथपथेषु कयाहारे य कशामहारांश्च 'चाबुक' इति भोषायाम्, 'ल यन्पहारे य' लतामहारांश्च यष्टिप्रहारान् 'छिवापहारे ग' छिवामहारांश्च%3D चिक्कणकशापहारां श्च 'निवाएमाणा' निपायन्तः पुनः पुनः कुर्वन्तः छारं 'क्षारं = भस्म धूलि रजः कयवर, कचवरंतृणधूल्यादिपुञ्ज च 'उरि' उपरि तस्योपरि पक्किरमाणा २' प्रकीर्यमाणाः २=पुनः पुनः उत्क्षिपन्तो महता महता शब्देन उद्घोषयन्त एवं वदन्ति एष खलु देवानुप्रियाः ! करित्ता देवदिनन्नम्स आभरणं गेहंति) मार मार कर फिर उन्होंने उसके दोनों हाथों को कमर के पीछे करके बांध लिया और बांध कर उसके पास से देवदत दारक के आभरणों को ले लिया। (गेह्नित्ता नियम तकमरम्म गीवाए बंधति बंधित्ता माल्या कच्छगाओ निक्खमंति) लेर फिर उन्होंने उम विजय चोर को ग्रीवामें बांधा और बांधकर फिर वे उस मालुयाकच्छक से बाहर निकले । (पडि निक्खमिना जेणे राज गहे नगरे तेणें व उवागच्छंति) बाहर निकल कर फिर-वे सबके मब राजगृह नग की ओर चल दिये (उवाच्छित्ता रायगिहं नयरं अणुणपविसति) चलकर वे गनगृह नगर आये ८ अणु विसिना रायगिहे नयरे सिंघागतियच उचञ्चरमहा पहपहेसु कसप्पहारे य लयप्पहारे छिवापहारे य निवाएमाणा २ छारं च धूलिं च कयवरं च उवरि पक्किरमाणा २ महयार सोणं उग्रोसेमाणा (करिता अबउडगवंधण करेंति, करिता देवदिन्नम्म दारगस्स आभ रण गेहति) आम भारी पटीने तेना ने लाय पा०1 viध्या भने तेनी पासेथी 2013 हेपत्तनां धरेणु पोताना ४५ ४ा. (गेण्डित्ता विजयम्म तककरम्स गीगाए बधंति बधित्ता मालयाकच्छगाओ पडिनिक्खम ति) કબજે કરીને તેઓએ ચોર વિજયને બીજી વખત ગળામાં બાંધે અને પછી તેઓ भासु। ४२०थी मा२ नीन्या. (पडिणिक्वमित्ता जेणेव रायगिहे नयरे तेणेब उवागच्छति) त्यांशी तेमा २०४ड ना२ त२५ गया (उधागच्छित्ता रायगई नयर अणुपविसंति) भने २०४ नाभा प्रवेश्या (मणुपविसित्ता रायगिहे नयरे सिंघाडगनियचउक्कचच्चरमहापहपहेसु कसप्पहारेय लय सहारे छिचापहारे य निवाहमाणा २ छारच बलिं च कयवर उपरि पक्किरमाणा २ महया२ मण उग्धोसेमाणा एवं वयंति) २४५ नाभा प्रवेशाने For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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