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अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ०२सूत्र. ७ देवदत्तवर्णनम्
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दासचे पमतं पास, पासित्ता दिसालोय करेइ करेत्ता देवदिन्नं दारगं गेण्ड, गेण्हित्ता कक्स अल्लियावेइ अल्लियावित्ता उत्तरिजेणं पिहेs, पिहित्ता सिंग्धं तुरियं चवलं चेइयं रायगिहस्स नगरस्स अव दारेणं निग्गच्छs, निगच्छित्ता जेणेव जिपणुज्जाणे जेणेव भग्गकूबए तेणेव उवागच्छङ, उवागच्छित्ता देवदिन्नं दारयं जीवि याओ ववशेवेड, ववरोवित्ता आभरणालंकारे गिoes गिoिहत्ता देव दिन्नस्स दारगस्स सरीरगं निप्पाणं निच्चेहं जीवियविप्पजढं भग्गकूव पक्खिवइ, पक्खिवित्ता जेणेव मालुयाकच्छए तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता मालुया कच्छयं अणुपविसइ, अणुपत्रिसित्ता निच्चले निष्कंदे तुसिणी दिवसं खवेमाणे चिरइ ॥सू. ७॥
टीका- 'तरण से पंथए' इत्यादि - 'तरणं' ततः खलु = तदनन्तरं ' से ' असौ पान्थकनामा 'दासचेडए' दासचेटक : = दासपुत्रो यो धन्य सार्थवाहस्य गृहे कर्मकरत्वेन स्थित आसीत् स देवदत्तस्य दारकस्य 'बालगाही' वाल ग्राही बालं ग्रहीतुं शीलमस्यास्तीति बालग्राही = शिशुसंरक्षको जातः । असौ देवदत्तं दारकं कथां गृह्णाति गृहीत्वा बहुभिः 'डिभएहि य' डिम्भकैच,
'तरण' से पंथ दासचेडए' इत्यादि ।
टीकार्थ - (तरणं) इसके बाद ( से पंथए दासचेडए) यह पांथकनाम का दास पुत्र जो धन्य सार्थवाह के घर पर - नौकर - था ( देवदिन्नस्स दारगस्स बालगाड़ी जाए) वह देवदत्त का बालग्राही - शिशु अवस्था का संरक्षकहुआ । (देवदन्नं दारयं कडीए गेव्हह ) यह देवदत्त को अपनी कमर = गोद में लिये रहता था । (गेव्हित्ता ) यह उसे अपनी गोद में लेकर ( बहूहिं
तर णं से पंथ दासचेडए इत्यादि ॥
टीअर्थ (तए णं) त्यार पछी ( से पंथए दासचेडए) चांथग नाभे हास पुत्र--! धन्यसार्थवाहुना धेर नोउर तो-- ( देवदिन्नस्स दारगम्स बालग्गाही जाए) माज द्वेवहत्तना संरक्षणु भाटे नियुक्त उरवामां आव्या (देवदिन्नं दारगं डीए गेहइ ) ते देवत्तने उड=मोणामां मेसाडीने रामतो हुतो. (गेण्डित्ता) भने
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