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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शाताधर्मकथाङ्गमत्र पुगन्धन पाल्पालङ्कारं याति, गृहीत्वा स्वकाद् गृहान्निगच्छति. निर्गत्य राजगृ नगरं मध्यमध्येन निर्गच्छति, निर्गत्य यत्रैव पुष्करिणी तत्रैवोपागच्छति, उपगत्य पुष्करिण्यास्तीरे सुबहुं पुष्पगन्धवस्त्रमाल्यालङ्कारं स्थापयति, स्थापयित्वा पुष्करिणीमवगाहते, अवगाह्य जलमज्जनं करोति, कृत्वा जलक्रीडां करोति, कृत्वा स्नाता कृतबलिकर्मा 'उल्लपडसाडिया' आईपटशाटिका जलावगाहनेन आर्द्र पटशाटिके उत्तरीयपरिधानवस्त्रे यस्याः सा तथ, तादृशी सा यानि तत्र 'उप्पलाई' उत्पलानि-कमल.नि 'जावर हस्सपत्ताई' यावन्सहस्रपत्राणि-सहस्रदलकलितानि महापत्राणि सन्ति तानि स्वादिम आहार तैयार करोया (उपक्खडाविना सुबहुं 'फगंधवत्थमल्लालंकारं गोहा) बाद में पुष्प गंध वस्त्र माला अलंकार को लिया और (गेण्हिता) लेकर (सयानो गिहाओ) अपने घर से (निगच्छइ) वह (निकली निग्गच्छिता रायगिहं नयरं मज्झं मझगं णिग्गच्छइ) निकल कर राजगृह नगर के ठीक बीचोबोच मार्ग से हो कर वह चली (निग्गच्छित्ता जेणेव पोखरणीतेणेव-उवागच्छइ) चलते२ वह वहां पहुंची जहां पुष्करिणी थी। (नागच्छित्ता पुक्वरिणीए तीरे सुबहु पुप्फजावमल्लालंकरं ठवेइ) पहुँचते ही उसने उस पुष्करिणी के तीर पर वह चारों प्रकार के आहार की सामग्री तथा पुष्प आदि सब वस्तुएँ रख दी (ठवित्ता पुकावरिगि ओगाहइ) रख कर फिर उसने उस में अवगाहन किया (ओगाहिता जलमजणं करेड) अवगाहन कर स्नान किया (जलकोड करेइ) जल क्रीडा को (करिता व्हाया कय लिम्मा उल्लपडसाडिगा जाई तत्थ उप्पलाइ जाव सहस्सप नाई ताई(उबक्खडाविना सुबहु पुप्फगंधवत्थमल्लालंकार' गेहइ) त्या२५छी पुष्प, वस्त्र, भाणा मने माने सीधा अने. (गेमिहत्ता) साने (सयाओ गिहात्रो) पोताना धेरथी (निगच्छइ) ते मडा नीती (निगच्छित्ता रायगिहं नगरं मझ मज्झेणं णिगच्छइ) नीजीने २४ नगरी ४ वयो वस्य २२तेथी ते यादी (निग्गच्छित्तो जेणेव पोकवरणी तेणेव उवागच्छइ) यातi यासतi orei पु२शी ती त्यां पांथी. (उवागच्छिता पुक्रवरिणीए तीरे सुबहुं पुप्फ जाव मल्लालंकार ठवेड) त्यां पडांयीन तेणे. युjिlu sis यारे andn मानी सामग्री कोरे गधी वस्तुम भूटी सीधी. (ठवित्ता पुरखरिगि ओगाहइ) भून ते धुरिणीमा तरी (ओगाहिता जलमजणं करेइ) त्या तरीन ते स्नान ध्यु (जलकोडं करेई) 31 ४३री (करित्ता पहाया कयबलिकम्मा उल्लपडसाड़िगाजाई तत्थ उप्पलाई जाव सहस्सपत्ताई ताई गिण्डइ) त्या२ पछी न्यारे तेणे For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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