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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३८ ज्ञाताधर्म कथा वदेस समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ तावता मे सेयं कलं पाउप्पभायाए रयणीए जात्र तेयसा जलंते सुरे सम३ वंदित्ता नमंसित्ता समणेणं भगवया महावीरेणं अन्भणुन्नायस्स समाणस्स सयमेव पंच महव्वयाई आरुहिता गोयमाइए समणे निग्गंथे निग्गं थिओ यखामित्ता तहारुवेहिं कडाई हि थेरेहिं सद्धिं विउलं पव्वयं सनियं सनियं दुरुत्ता सयमेव मेघणसन्निगासं पुढ विसिलापट्टयं पडिलेहेत्ता सले. हणा सणाए सिस्स भत्तपाणपडियाइ क्खियस्स पाय वोवगयस्स कालं अणवखमाणस्स विहरतए | एवं सपेहेइ, संहिता कलं पाउप्पभायाए रयणीए जाब जलते जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता सम३ तिक्खुत्तो आग्राहणं पयाहिणं करे करिता वंदs नमसइ वंदिना नमसित्ता चारुन्ने नाइदूरे सुस्सू समाणे नसमाणे अभिमुहे विणणं पंजलिवुडे पजुवास मेहेत समणे भगवं महावीरे मेह अणगारं एवं वयासी से पूर्ण तव मेहा ! राओ पुव्वतावर तक लसमयंसि धम्मजागरिथं जागरमाणस्स अयमेयावे अज्झथिए जाव समुपजित्था - एवं खलु अहं इमेणं ओरा लेणं जाव जेणेव अहं तेणेव हव्त्रमागए, से जूणं मेहा अटेसमटे ? हंता अस्थि । अहासुहं देवाप्पिया! मा पडिबंधं करेह ॥ सू. ४८॥ । टीका - - ' एणं तरस मेहस्स' इत्यादि । ततः खलु तस्य मेनगा रस्य रात्रौ पूर्वरात्रापररात्रकालसमये 'अम्मजागरियं जाएरमाणस्व धर्म 'तणं तस्स मेहस्स अगगारस्त' इत्यादि । टीकार्थ - (ए) इसके बाद (तस्त मेहस्म अगगा(रस) इस मेघकुमार अनगार को (राओ) रात्रि में (पुञ्चरत्तावत्तकालयम) पूर्वरात्र 'तरणं तरस मेहस्स अणगारस्त' इत्यादि । टीकार्थ - ( न एणं) त्यारपछी (तस्स मेहस्स अणगार स्म) अनगार भेघकुमारने (राओ) रात्रिमां (पुत्ररत्तावरत्तकाल समयसि) पूर्व त्रिशु ने अपर त्रि अणना चमते For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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