SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 546
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञाताधर्मकथ " त्वाद् उपवेशनाशौ अस्थिजनिता या किटिकिटिका शब्दविशेषः तां भूत= प्राप्तः स तथोक्तः, उपवेशनादौ शुष्कास्थिजनितकिटिकटिकाशब्दवान् इत्यर्थः । 'अचिम्मावणध्दे' अस्थिचर्मावनद्धः मांसशोणित शुष्कत्वात् केवलमस्थिचर्मवान् इत्यर्थः । 'किसे' कुशः = दुर्बलः, 'धमणि संतए' धजनिततः=यक्तनाडीकः मांसक्षयेण दृश्यमाननाडीकत्वात्, 'जाए यात्रि होत्था' जातथाप्यभवत् 'जीवं जीवेण गच्छइ' जीवं जीवेन गच्छति=आत्मबलेन गच्छति न तु शरीरबलेन, एवं आत्मवलेन तिष्ठति 'भासं भासिता गिलायर' भाषां भावित्वा ग्लायति=भाषणानन्तरं ग्लानिमाप्नोति, 'भासं भासमाणे गिलायइ' भाषा भाषमाणः सन्ग्लायति - भाषणसमये ग्लानो भवति, तया- 'भास मासिस्साहो गये, शरीर में रुक्षता दिखलाई देने लगी। मांस के उपचय (वृद्धि) से हीन हो गये, खूनवर्धक आहार आदि के अभाव से खून से रहित हो गये उठते बैठते उनकी हड्डियों से मांस रहित होने के कारण किटिकटिका शब्द होने लगा, केवल हड्डी और चमडा ही उनके शरीर में अवशिष्ट रहा कि जिस से वे बहुत अधिक दुर्बल हो गये, (धमणिसंतए जाए यात्रिहोत्या) नाडियां उनके शरीर में स्पष्ट दिखलाई देने लगी । इस तरह की उनकी स्थिति हो गई । (जीत्रं जीवेण गच्छइ, जीवजीवेण चिद्रः भासं भासित्तागिलाइ ) वे चलते तो शरीर के बल पर नही आत्मा के बल पर ही चलते बैठते तो आत्मा के बलसे ही बैठते, शारीरिक बल से नहीं। बोलने के बाद उन्हें थकावट ज्ञात होने लगती । ( साभासमाणे गिलाय. भासं भासि समिति गिलाय ) बोलते समय भी वे ग्लान होने लग जाते। मैं बोलूंगा इस विचार से भी उन्हें कष्ट का अनुभव होने लगता । मतलब માંસના ઉપચય (વન) થી તેએ રહિત થઇ ગયા, ઉઠતાં બેસતાં માંસ સૂકાઈ જવાથી તેમનાં હાડકાંમાંથી કડકડ શબ્દ થવા લાગ્યા, ફકત હાડકાં અને ચામડી જ तेभना शरीरै रडीञयां, भने तेसो अत्यन्त हुमना थाई गया. (धमणि संतए जाए यात्रि होत्था) तेभना शरीनी नसो स्पष्ट रीते देणावा लागी. भेघठुभारनी भावी स्थिति थई गई हुती. जीवं जीवेणं गच्छइ, जीव जीवेगं चि मासं भासित्ता गिलाइ ) तेथे न्यासता तो आत्मानां णणे, शरीरना गणे नहि, तेथेो मेसता તાં આત્માના અળે જ, શરીરના ખળે નહિ. એલ્યા પછી તેઓ થાક અનુભવતા હતા. (भासं भासमाणे गिलाइ भासं भासिस्समिति गिलायइ) गोसवाना समये पशु તેઓ ગ્લાન થવા લાગતા. ‘હું ખેલીય’ આમ જ્યારે તેમના મનમાં ખાલતા પહેલાં વિચાર ઉદ્ભભવતા ત્યારે તેમને કષ્ટ થવામાંડતુ કહેવાના મતલબ એ છે કે મેઘકુમાર For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy