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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मनगारधर्मामृतषणिी टोका अ. १ स. ४५ मेघमुनि प्रति भगवदुप्रदेशः ५११ एवं णिसियव्यं एवं तुहियव्वं एवं मुंजयध्वं भासियवं उट्रायर पाणाणं भूयाणं जीवाणं सत्ताणं संजमेणं संजमियव्वं । तएणं से मेहे समणस्त भगवओ महावीरस्स अयमेयारूवं धम्मियं उक्एस सम्म पडिच्छइ, पडिच्छित्ता तह चिटइ जाव संजमेणं संजमइ। तएणं से मेहे अणगारे जाए ईरियासमिए अणगारवन्नओ भाणियव्यो। तए से मेहे अणगारे समस्स भगवओ महावीरस्स एयारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एकारसअंगाई अहिज्जइ, अहिजित्ता बहहिं चउत्थ छट्टमदसमदुबालसेहिं मासद्धमासखमणेहि अप्पाणं भावमाणेविहरइ। तएणं समणेभगवं महावीरे रायगिहाओ नगराओ गुणसिलाओ चेइयाओ पडिक्खिमह पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥सू० ४५॥ . टीका--'तएणं तुम मेहा । इत्यादि । ततःखलु त्वं हे मेघ ! 'आणु पुव्वेणं भानुपूर्व्या क्रमेण गर्भवासान् निष्क्रान्तःसन् धृतजन्मा सन् उन्मुक्तवा. लभावो यौवनकमनुमाप्तः ममान्ति के मुण्डो भूत्वा अगाराद् अनगारितां प्रत्रजितः' तंजा' तद यदि यावत् त्वया हे मेघ ! तियेग यौनिकभावमपागतेन'तएणं तुम मेहा' इत्यादि टीकार्थ-(तए ) इसके बाद ( मेहा) हे मेध ! (तुमं ) तुम (आणुपुध्वेणं) क्रमशः (गम्भवासाओ निक्खते समाणे) गर्भवास से निकले और (उम्मुक्कबालभावे) बाल्यावस्था का परित्याग कर (जोव्वगगमणुपचे) यौवन अवस्था को प्राप्त हुए (मम अंतिए मुंडे भवित्ता) फिर मेरे पास मुंडित होकर (अगाराओ अणगारियं पब्वइए) तुम आगारसे अनगारी 'तएणं सुमं महा!' इत्यादि Astथ-तएणं) त्या२ मा (मेहा) ! (तुम) तमे (आणुपुरुषेणं) मनु ४ (गम्भवासाभो निक्खंते समाणे) NAHI HAR -व्या भने (उम्मूकपालभावे) यादीन (जोवणगमणुपने ) पान या. (मम अंतिए मुंडे भविता) पड़ी भारी पास मुंडित थान (आगारामओ अणगारियं पव्वइए) For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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