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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६० शाताधर्मकथास वान् इत्यर्थः 'पंडुरसुविसुद्धनिद्धनिरूवहयविसइणहे' पांडुर-सुविशुद्ध स्निग्धनिरूपहतविंशतिनखः-तत्र पाण्डुरा: श्वेताः सुविशुद्धाः निर्मलाः स्निग्धा: चिक्कणाः निरूपहताः स्फोटकादिरहिताः विंशतिनखा यस्य सः श्वेत निर्मलचिक्कणम्फोटकरहितनखधारीत्यर्थः छद्दन्ते- षट्दन्नः पट्दन्तधारी सुमेरुपभनामा हस्तिराजस्वमासीरिति सम्बन्धः। 'तत्थणं तुम मेहा' तत्र खलु त्वं हे मेघ ! बहुभिहस्तिभिर्हस्तिनीभिश्च 'लोट्टएहि य' लोहकैश्च-कुमारावस्था पन्न हस्तिवालकैः ‘लोटियाहि य' लोटिकाभिश्च=कुमारावस्थापन्नहस्ति बालि. काभिश्च 'कलभेहि य' कलभैश्व-अतिलघुवयस्कहस्तिशिशुभिश्च 'कलभियाहि य' कलभिकाभिश्च 'सद्धि' सार्ध संपरिवुडे' सम्परिवृतः' हथिसहस्सणायए' हस्तिसहस्रनायकः- हस्तिनां सहस्र हस्तिसहस्र,तस्य नायकः 'देसए' देशकः%D मार्गादिदर्शकः ‘पागढी' प्राकर्षी अग्रगामित्वात. 'पटवए' प्रस्थापको विविध कार्येषु उन्नत थे। तुम् श्वेत, सुविशुद्ध (निर्मल) चिकने, स्फोटक आदि से रहित ऐसे बीस नख थे। छह तुम्हारे दांत थे। इस प्रकार तुम वहां हस्तियों के राजा थे। नाम तुम्हारा सुमेरुप्रभ था। (तत्थणं तुम मेहा) वहां तुम हे मेघ ! (बहुहिं हस्थिहिं य हत्थोणियाहि य लोट्टएहिय लोटिया हि य कलभेहि य कलभियाहि य सद्धि संपरिवुडे ) अनेक हस्तियों से अनेक हथनियों से, कुमारावस्थापन्न अनेक हस्ति बालकों से कुमारावस्थापन्न अनेक हस्ति बालिकाओं से अति लघुवयस्क हस्ति शिशुओं से अनेक हाथियों की छोटी २ बच्चियों से सदा घिरे रहते थे। तुम ( हथिसह सणायए) एक हजार हाथियों के स्वामी थे। (देसए) उन्हें मार्गादिक के प्रदर्शक थे (पागही) अग्रगामी होने के कारण तुम उन्हें हर एक काम खींचते रहते थे। (पट्टवए) अनेक कार्यों में उनको नियोजित ઉન્નત હતા. તમારા વેત સુવિશુદ્ધ (નિમંળ) ચીકણા, સ્ફોટક (ફેલ્લા) વગેરેથી રહિત એવા વીસ નખ હતા. તમારે છ દાંત હતા. આ રીતે તમે ત્યાં હાથીઓના २० ता. सुभेप्रम तभा नाम तु. ( तत्थणं तुम मेहा ) भे! त्यो त (बहुहिं हत्थीहि य हत्थीणियाहि य लोहए हि य लोटियाहि य कलभेहि य कलभि याहि य सद्धिं संपरिवुडे ) लाथी-साथी, घी बीमाथी, भा२ अबસ્થાવાળા ઘણુ હસ્તિબાલેથી કુમારાવસ્થાવાળી ઘણી હસ્તિબાળાઓથી ઘણીજ નાની ઉંમરના હાથીના શિશુઓથી ઘણી હાથીઓની નાની બચ્ચીઓથી હમેશાં વીંટળાमेसा २उता हता. तमे ( हथिसहस्सणायए ) १२ हाथीभाना स्वामी हता ( देसए) तेभना भाग वगेरेना प्रशि' (मतावना२) ता, (पागट्टी) સૌના આગેવાન હતા તેથી તમે બીજા બધાને કામમાં નિયુકત કરતા હતા. For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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