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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३५ अनगारधर्मामृतवर्ष टीका अ. १. स ३८ मे कुमारदीक्षोत्सवनिरूपणम् तीतदुःखानुभवःप्रत्यक्ष एवेति कस्य हृदयं न भीषयति । से जहानाम ए' तद् यथानामकं यथादृष्टान्तं दृष्टान्तमनुसृत्य वर्ण्यते इत्यर्थः कोऽपि गाथापतिःधनसमृद्ध गृहस्थः अगारे ' अगारंसि झियायमाणंसि' अंगारे-गृहे ध्यायति धातूनामनेकार्थत्वात् प्रज्वलिते सतीत्यर्थः 'जे' यत् तत्थ' तत्र 'भंडे' माण्डो भवति 'अपभारे' असभारः 'मोलपुरुए' मूल्यगुरुरुः- बहुमूल्यः तं गृहीत्वा 'आयाए' आत्मना - स्वयम् 'एगतं' एकान्त निरूपद्रवस्थानं 'अवकमद' अपक्रा मति - गच्छति, एवं च चिन्तयति 'एस मे णित्थारिए समाणे' एषः मूल्यगुरु को भाण्ड : ' म निस्तारितः सन् 'पच्छा' पञ्चात् भविष्यति काले, 'पुरा' विवक्षित कालात् पूर्वस्मिन् काले संततिपरम्परायों स्व सत्तायां चेत्यर्थः 'हियाए' featय जीवनादि निर्वाहजनकाय 'सुहाग' सुखाय भोगसंपाद्यानंदाय 'खेमाए क्षेमाय समुचितसुखसमर्याय 'णिम्सेयसाए' निश्रेयसाथ भाग्योदयाय में प्राणोत्क्रमणकालिक दुरन्त अनन्त वेदनाओं से उद्भूत मूर्च्छा के सद्भाव से वर्णनातीत दुःखों का अनुभव इस जीव को प्रत्यक्ष में ही होता है - इस लिये यह जरा और मरण से आदीप्त एवं प्रदीप्त हो रहा हैं। अतः इस तरह की इस की यह स्थिति किस समझदार प्राणी के हृदयकों भयान्वित नहीं करती है। (से जहानामए) इसी बात को दृष्टान्त द्वारा समर्थित किया जाता है - (कोई गाहावई अगारंसि झियायमाणंसिजे तत्थ भंडे भवइ अप्पभारे मोल्लगुरुए तं गहाय आयाए एगतं अवक्कम इ) जैसे कोई धन समृद्ध गृहस्थ घर में आग लग जाने पर उसमें की अल्पभारवालो वस्तुओं को जिनकी कीमत बहुत भारी होती है लेकर स्वयं निरूपद्रव स्थान में चला जाता है और ऐसा विचार करता है (एस मेणित्यारिसमा पच्छापुरा हियाए सुहाए खेमाए जिस्से साए अणुग्गामियाए - પ્રાણાક્રમણ કાલિક દુરન્ત અનન્ત વેદનાઓથી, મૂર્છાવસ્થાથી, જેમનું વર્ણન પણ અશકય છે આવા દુઃખાના અનુભવ પ્રત્યક્ષ રૂપે થાય છે. એટલા માટે આ જગત વૃદ્ધાવસ્થા અને મૃત્યુથી આદીસ અને પ્રદીપ્ત થઈ રહ્યું છે. એથી એવી આ જગતની लयर स्थिति या सभनु भाणुसना हृह्यने द्यावी न भू. ( से जहानामए ) भेटवार्तने दृष्टांत द्वारा वधारे पुष्ट वामां आवे छे. ( केई . गाडा वर्ड अंगा रंसि झियायमाणंसि जे तत्थ भांडे भवइ अप्पमारे मोलगुरुए तं महाय आयाएं एतं अत्रकमइ ) प्रेम अर्ध पैसामात्र समृद्ध गृहस्थ घर सजणी ठे ત્યારે તેમાંથી ઘેાડા વજનવાળી ભારી કિંમતી વસ્તુને લઇને પાતે નિરુપદ્રવૅ સ્થાનમાં चहांथे अने ते विचारे -- ( एस में णित्थारिए समाणे पच्छा पुरा हियाए सुहाए खेमाए णिस्सेयसाए अणुग्गामियाए भविस्सा ) भिती वस्तु भारा For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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